निष्काम साधक | Nishkam Sadhak

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Nishkam Sadhak  by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस ग्रथ को यशपालजी को घेंट कर तो दिया, पर उतने से उनके हितैधियों को सन्तोष नही हुआ उन्होंने लगभग एक वर्षं पूवं अपनी श्छा-पूति के लिए चतुराई से काम लिपा। उन्होनि प्रथ का कायं चुपचाप भारभ कर दिया। यशपालजी को कानोकान खबर नही होने दी और जब वह अपने प्रयत्न मे इतना आगे बढ़ गए कि पीछे लौटना सभव नही' था तो उन्होंने यशपालजी से चर्चा की। यशपालजी ने उसका स्वागत नहीं किया । उनका कहना था कि मैंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया कि मेरे लिए इस प्रकार के सम्मान की अ्यवस्था की जाय । मुझसे कही अधिक सेवा करने वाले असख्य व्यक्ति हमारे बीच विद्यमान हैं। उनके लिए कुछ किया जाय तो उसकी साथेकता होगी। पर जब उन्होंने सपोजको की विवश्वता देखी तो सुझाया कि यदि आपको ग्रथ तैयार करना ही है तो उसे व्यक्ति-परक न बनाकर उन मूल्यों को समपित कीजिए, जिन्हे मैंने अपने जीवन से सबसे अधिक महत्व दिया है । व्यक्ति जाता है, चला जाता है, लेकिन मूल्यों का महत्व तो सदा रहता है। सयोजको ने इस बात को मान लिया | प्रस्तुत प्रथ के पीछे यही भावना है। यशपालजी ने मानवीय मूल्यों को सदा सर्वोपरि माना है। प्रथ की अधिकाश सामग्री मानवीय मूल्यों की ओर ही सकेत करती है। ग्रथ के बहुत-से पृष्ठ यशपालजी के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय मे हैं, किन्तु उनसे भी वही ध्वनि निकलती है । यशपालजी के मित्रों, साथियो, सम्बन्धियो आदि का समुदाय बहुत बडा है, वे यशपालजी के प्रति गहरा अनुराग रखते हैं। उनके अभिनदन-ग्रथ के लिए मगल कामनाए मौर सस्मरण बडी सख्यामे प्राप् होना स्वा- भावषिक है। इन मगल कामनाओ और सस्मरणों का सग्रह प्रथम खड में कर दिया गया है। सस्मरण हमारा मुख्य विषय है और हम कह सकते हैं कि इस ग्रथ मे जो सस्मरण दिये गये हैं, उनमे अत्यन्त हादिकता है, कुछ सस्मरण तो बहुत ही मार्मिक है। यशपालजी के परिवार के सदस्यो के लिखे सस्मरण तो विशेष रूप से रोचकं और मधुर बन पडे हैं । यशपालजी का जीवन-पटल बडा ही विस्तृत है। उनका कर्म-क्षेत्र मुख्य रूप से साहित्य रहा है। उन्होंने अनेक विधाओ मे साहित्य का निर्माण किया है 1 कहानियां, कविताए, सस्मरण, निबध, यात्रा-वृत्तान्तं आदि न जाने क्या-क्या लिखा है । कई पतों का सम्पादनभी किया है। उनमे सामयिकं समस्याभो पर बही निर्भीकता से टिप्पणिया लिखी हैं। उनकी रचनाओ मे से चुनी हुई कृतिया इस ग्रथ मे दी गई हैं। लेकिन उससे पहले के एक खण्ड की ओर मैं पाठकों का ध्यान विशेष रूप से आक्ृष्ट करना चाहता हू । वह खण्ड है, 'जीवन के विविध सोपान।' यह खण्ड आत्मक्थात्मक है, जिसे यशपालजी से इस ग्रथ के लिए आग्रहपूर्वक लिखवाया गया है। इसमे उन्होंने बताया है कि उनके जीवन पर कब और किस प्रकारके सस्कार पडे और उनके पीछे किस-किसका हाथ रहा । यशपालजी का प्रभ्ुख गुण कृतज्ञता है। वह दूसरो के उपकार को, चाहे वह उनके सबंधियों द्वारा किया गया हो या मित्रों द्वारा अथवा किसी विरोधी हारा, कभी भूसते नही और उसका बडी सहृदयता से स्मरण भी करते हैं। इस खंड की सामग्री में जहा उन्होंने अपने पूज्य माता-पिता के प्रति कृतजञता व्यकत की है, बहा अपने अनेकं छोटे-बडे उपकार-कर्ताभो को भी बहे भादर से याद किया है । जिस प्रकार व्यक्ति अपने जनक और जननी का चिर-ऋणी होता है, उसी प्रकार वह उस पवित्र भूमि का भी ऋणी होता है, जो उसे जन्म देती है। यशपालजी का जन्म ब्रज में हुआ है। धर्मं-अध्यात्म, साहित्य-सस्कृति, कला-इतिहास तथा अन्य दुष्टियों से ब्रज की भूमि महान है। यद्यपि यशपालजी के दोनों बच्चो (सुपुत्री सौ अन्तदा और आयु सुधीर) का जन्म विध्य-भूमि मे हुआ है और वे उस पावन भूमि को बडा सम्मान देते हैं, फिर भी ब्रज की भूमि उन्हे कभी विस्मृत नहीं हो पाती। उस ऋण को ध्यान मे रखकर बारह ८ निष्काम साधक




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