तृतीय हिंदी - साहित्य - सम्मलेन | Tritiy Hindi-sahitya-semelan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[২] सभापतिका सम्भाषण । जय जयति जगदाधार सिरजन करत जो संसार है। छायो अविद्या रासि तै चादयो करन उद्धार है ॥ पावनि परम निज बैद वानी को करत संचार है। जग मानवन मन माहि कौन्यो | ज्ञान को विस्तार है ॥ जयति सिदानन्द्‌ घन जगपति मंगल सूल । दया बारि बरसत रहो सदा होय अनुकूल ॥ जासु क्षपा कन लेस लि मो सम ह मतिमन्द्‌ | लहत महत समान यद बुघ जन सों सानन्द्‌ ॥ मान्यवर सखागतकारिणो समितिके सभापति महाशय और समुपस्थित सह्ृदय सज्जनसम्ूह ! परात्यर परमेश्वरको इस अतक्यं ओर अप्रमेय रुष्टिमें जहां अन्य असंख्य अघटित घटनायें संघटित होतीं, _ वैसेहो यह आज आपको कृपा भो कुछ विलक्षण हो वेचित्रगका दृश्य दिखला रहो है, कि आप आय्यमिश्वोंकी इस सुप्रतिष्ठित महासभाका, जिसमें एकस एक विदय, सादित्यममन्न तथा खमाटभाषाभक्त विराज- मानदो, मुभसा एक अति सामान्य व्यक्ति जो विद्या बुद्धि भौर अन्य आवश्यक योग्य- ताओंसे सर्वधा शून्य हो, सभापति बने। अवण्यहो इससे अधिक सौभाग्यका विषय ओर दूसरा क्या हो सकता है कि जिसमें कुछ भो योग्यता न हो, परन्तु यदि वह घुणाक्षरन्यायसे किसो प्रकार अपने कत्तव्य- कार्थकों भो सुसम्पन्न कर सके, जिसको मुझे कुछ भो आशा नहों है, वच्च सुयोग्य सज्जनोंसे योग्य माना जाकर सम्भानका भागों हो । द महाशयो ! सचमुच भेरे आश्वयका ठिकाना न रहा, जब कि मुझे यह्न सूचित किया गया कि, “कलकत्त को खागतकारिणो सभाने तुमको ठतोय साहित्यसम्मेलनका सभापति चुना है।” मैंने उत्तरमें तुरन्तो लिखा कि-- यह आप लोगोंने क्या किया ! में सवंधा इसके अयोग्य ह'। सोच समभ कर कोई उचित प्रबन्ध कोजिये ।” स्वागत- कारिणो समितिके मन्त्रो महाशयका भो पत्र प्राप्त इुआ। उन्हें भो मैंने इसो आशयका उत्तर दिया | पर में बहुत कुछ सोच विचार करके भो यह न समझा सका कि, अन्य एकसे एक सुयोग्य विद्वान बुद्धिमान अनुभवों देश और भाषाभक्तोके होप इए भो मुभा सरोखे सवंगुणोंसे विह्ोन व्यक्तिको ऐसे महत्पदके श्रथं लोगोंने क्यों चुना है? क्या आपका आशय यह है कि, जो वास्तवर्मं सम्मानित हैं, उन्हें सम्मान प्रदान करनेसे क्या लाभ होगा। अतः किसो ऐसेहो को सम्मानित करना योग्य है, जो यथाथमें हमारेहो सम्मानसे सम्झामित हो।




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