हितोपदेश | Hitopadesha

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Hitopadesha by Narayan Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-्दे करनी का फठ मित्रें वियकुम्भ॑ पयोमुसम्‌ । दे 3 हद सामने टूब-ना मधुर वो उनेवाले और पीठ पीछे विय भरी छूरी मारने पाले मित को छोड़ देना चाहिए । ही श ८ श मगधघ देन मे चम्पारन नाम का विस्तृत वन हैं । किसी समय उस वन मे एक कोआ और एक हिरण रहा करते थे । दोनो घनिप्ठ मित्र थे । हिरण स्वेच्छा से वन में मिश्चिन्त दि था । एक दिन वह मस्त होकर घूम रहा था उसे एक सियार ने देख लिया । हिरण के पुप्ट अग और सल गरीर को देखकर सियार के मुंह में पानी भर आया । हु जानता था कि हिरण के साथ-साथ दौइ़ना या उससे इना सम्भव नही, अतः नीति से काम लेना चाहिये । इस हिरण के पास जाकर वह बोला : मित्र, आप तो हैं ! तुम कौन हो ? मे तो तुम्हें पहचानता नहीं, हिरण फँ आइचये से पूछा ।




User Reviews

  • epustaka_book

    at 2018-04-22 18:27:02
    Rated : 8 out of 10 stars.
    One More
  • epustaka_book

    at 2018-04-21 05:51:22
    Rated : 8 out of 10 stars.
    "Great"
    Nice book with old great stories
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