सम्पूर्ण गाँधी वाड्मय वोल. 3 | Sampuran Gandhi Wangmay Vol.3

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Sampuran Gandhi Wangmay Vol.3 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३२ सम्पूणे गांधी वाड्मय- सालका हिसाव और बीजक-बही रखता हूँ। में हिसाबकी सिंगल और. डबल एंद्रीकी , पद्धति जानता हूँ। | _ मकान-मालिक श्री अब्दुल कादिरने कहा: . सें एम० सी० कमरुहीन ऐंड कम्पनीका प्रबन्धक हूँ।. .. (जिश्नकी बात चल रही है) उस दृकानके लिए पहले परवाना जारी था। परवाना ठिमीरकूको मिला था। डर्बत में मेरे ३ या ४ मकान हैं। मूल्यांकन-सूची में उनकी कुछ कीमत १८,००० था २०,००० पौंड है। इस जायदादका ज्यादातर हिस्सा मं किरायेदारोको किराये पर देता हँ। अगर दादा उस्मानकों परवाना नहीं मिलता तो मुझे किरायेंकी हानि उठानी पड़ेगी। वे बहुत अच्छे किरायेवार हैं। . . . में उन्हें रूम्बें अरसे से जानता हूँ । उत्तका रहन-सहन अच्छा है! .उनके घरमे साज-सामान बहुत है। . . - में परवाना-अधिकारीके फंसलेप्ते सस्तुष्ठ नहीं हूँ। | आपने उपनिवेशोके प्रधानमंत्रियोंके सामने “अवांछित व्यक्ति ” की जो व्याख्या की थी उसकी परिषदको याद दिलाई गई। व्याख्या यह थी: “इसलिए कि कोई आदमी हमसे भिन्न रंगका है, वह जरूरी' तौरपर अवांछतीय' प्रवासी नहीं है। अवांछनीय' तो वह दहै, जो गन्दा है या दुराचारी है, या कंगाल है, या जिसके बारेमें कोई अन्य' आपत्ति है, जिसकी व्याख्या संसद के कानून द्वारा की जा सकती है।” परन्तु यह सब केवल अरण्य-रोदन सिद्ध हुआ। जिस परिषद-सदस्य' ने १८९७ में प्रदर्शन-समितिका झण्डा उठाया था' और जो' कूरलेंड तथा नादइरीके भारतीय यात्रियोंकों “जरूरत होतेपर बल प्रयोग द्वारा ” लछौटानेके लिए तैयार था, वह “ कायल नहीं हुआ ” कि परवाना-अधिकारीकी कार्रवाई गलत हैं। और उसने प्रस्ताव किया कि उसके निर्णयक्री पुष्टि कर दी जाये। प्रस्तावका समर्थन करनेके लिए खड़ा होनेको कोई तैयार नहीं था, और थोड़ी देरके लिए ऐसा मालूम हुआ कि परिषद न्यायं करनेको तैयार है। परन्तु आखिर एक अन्य सदस्य श्री कालिन्स सहायताको वट ओौर उन्होने निम्नलिखित भाषणके द्वारा प्रस्तावका समर्थन किया: उन्हें आउचर्य नहीं कि परिषद परवाना देनेंसे इनकार फरनेकों बहुत अनभिच्छुक है । परन्तु उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि परवाना देनेसे इनकार कर दिया जायेगा। : [उनके कथनानुसार ] कारण यह नहीं है कि अजंदार या व्यापारका प्रस्तावित स्यान अयोग्व है, बल्कि यह है कि अर्जदार एक भारतीय है। भरी गांधीने जो-कुछ कहा है वह बिलकुल सच है और उन्हें (शी कालिन्सको) यह कहनेमें कुछ राहत महसुत्त हुई कि अधिकतर परवाने देनेसे इस आधारपर इनकार किया गया है कि अर्जदार भारतीय हैं। परिषदको एक ऐसी नोति अमलमें जानी पड़ रही है जिसे संसदने जरूरी समझा है। इससे परिषद बड़ी अप्रिय स्थितिसें पड़ गई हैं। नेटाली जनताके प्रतिनिधिके रूपमें संसद इस निर्णयप्र पहुँची है कि भारतीयोंका डर्वनके व्यापारपर अपना प्रभुत्व बढ़ाना अवांछनीय है। इसलिए परिषदको ये परवाने देनेसे इनकार करनेके छिये ऊगभग वाध्य हो जाना पड़ा है, जो अन्यभा आपत्तिजनक नहीं है। उन्होंने कहा, व्यक्तिगत रूपसे मं मानता हँ क्रि परिषदके सामने उपस्थित होकर परवाना सगनेके लिए अर्जेदार एक १. देखिए खण्ड >, पृष्ठ ३९३ 1. `




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