अनुभूत योग | Anubhut Yog

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Anubhut YogPart-v by Shyamsundarachayr vaishay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्द्च्न प्रथम भाग थ् इस कारण संकोचन ओर प्रसारण में भी अधिक पीड़ा मालूम पढ़ती हो तो उसे दूर करने के लिये यह औषध अच्यथ है । इसका व्यवहार करने से पाँचि-सात दिनो में ही दरीर कंचन के समान दाद्ध हो जाता है । इस तेल का सौ रोगियों पर प्रयोग किया जाय तो सभी अच्छे हो जायेंगे एक सनुष्य शी मसन्तु्ट लहीं रहेगा । ध्यवहार-विधि--घशरीर के जिस हिस्से मे खुजली हो, वहाँ पर इस तेल की धीरे-धीरे मालिश करनी चाहिये और मालिश के आधे घण्टे बाद उस जगह पिम्नोक्त चिफला के कवाथ का बफार! ( स्वेद ) देना 'दाहिये । त्रिफले का बयाथ योग--चिफला ( गुठछी निकाला हुआ ) का जबकुट एक सेर भर पानी छः सेर। बताने बी विधि--लोहे अथवा पीतल के बतंन में छः सेर पानी और त्रिफला को डालकर भाग पर पकायें । जब करीब एक सेर पानी जल जाय तब उसे उतार लें । बफारा देने फी विधि--जिस समय श्रिफ़ले का काढ़ा आग पर पकता रहे उसी समय चृल्हे मे दो बडी ईट के टुकड़े गरम होने को डाल दें और पामा तेल की मालिश शुरू कर दे । जब काढा तैयार हो जाय तब उसे चूल्हे से उतार ले और भाग मे पकते हुए ई ठ के गरम टुकडो को उसी काढे में डाल दें भौर उस कांढे को बहुत जल्दी एक खाठ के नीचे जिघर रखा बाता है रख दे और खाट के झपर रोगी को बैठाकर उसके ऊपर से एक कम्नल ढँक दें जिससे सारा शरीर ढक जाय । केवल इवास लेने के लिए जरा-सी नाक बाहर रखनी चाहिये । ध्यान रहे, जिस अंग मे अधिक खाज हो, उसी अग मे अधिक भाप ( स्वेद ) ऊगे और व्यर्थ इधर-उधर बेकार न जाय । पत्द्रह-बीस मिनट तक बफारा ले छेने के बाद रोगी के झारीर से कम्बल हटाकर उसका पसीना पोछ दें और एक डुछका कपड़ा पहनाकर उसे चिर्वात ( जहाँ अधिक हवा न हो ) स्थान में विश्ाम




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