शिक्षा विकास की कथा | Shiqs-aa Vikaas Kii Kathaa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ हिन्दू-शिक्षा यह तो सवमान्य है कि शिक्षा श्रोर ज्ञान भारतीथोां के लिये कोई नई बातें नहीं हैं। श्रत्म॑त प्राचीन काज़ से ही इस देश की विभिन्न जातियों ने शिक्षा ओर ज्ञान को हो सभ्यता का केन्द्र मान लिया था | अस्तु शिक्षा का संबंध धम से हुआ और उसका स्वरूप तथा संगठन धार्मिक हुये। शिक्षा देने और प्राप्त करने का उद्देश्य व्यवसायिक कुशलता अथवा सामाजिक उन्नति ही नहीं थी वरन्‌ शिक्षा देना एक घामिक कतंव्य था जिमके बिना देश, समाज तथा सम्यता का ऋण चुकाया नहीं जा सकता था | ईसा के ४००० वर्ष पूव द्वविड़ों ने अपनी सभ्यता में शिक्षा तथा धर्म मं ज्ञानमार्ग का स्थान दिया था, ऐसा भिध घाटी की सभ्यता के ऋ्रवशेषों से स्पष्ट है। बाद में झार्यो ने इस सम्यता को विजित करके अपने म॑ श्रात्मस तू कर लिया। श्रायं सभ्यतामं द्वविढ़ सम्यता ने परिवतन ফিরি, চিন্তু उतका मुख्य स्वरूप आ्राय हो बना रहा, दूमरे अब आर्यो पर द्रविड़ सम्यता के आरभ.र का पिक्छेपण मी दुखूह दहै) अस्तु यह बताना संमव नहीं कि कोन-कोन सो बातें मुख्यतया द्रबिड़ों ने आय सभ्यता को दीं, ओर कौन सी विशुद्ध श्राय पद्धति हैं| सिंघ घाटी की सभ्यता में लिखने के चिन्द स्पष्ट हैं, पर दम थार्या गें लेखन पद्धति का प्रचार बहुत बाद में पते ई। विद्यारंभ श्रधवा श्रच्रसखी- करण संस्कार का प्रचार हर्म सूत्रों के बाद है| स्पष्टतया मिलता है। उसके पहिले उपनयन के बाद शिक्षा आरम्म द्वाती थी, और उप्नयन




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