राजपूताने का इतिहास (बून्दी राज्य का इतिहास) | Rajputane Ka Itihas (Bundi Rajya Ka Etihasik)

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Rajputane Ka Itihas (Bundi Rajya Ka Etihasik) by Shree Jagdish Singh Gehlot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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्श राजपुतानं का इतिहास पर्मशास्त्रों के प्राधार पर शासन फरने गा विश्वास प्र्यक राजछिक्क के पर्ग्स पर मया शासक दिखा दिया करता था परन्तु उसके श्रमुसार सासत करे ही फुरसत नहीं मिलती थी । प्रारम्भ में वे वुन्दी की इकाई को ध्माएं रखते मे मुगरुकार में मुगछ-समिति को बनाएं रखने में वाद में मराठों के लिए भर एकवित करने में घौर भ्रपेजी युग में उनकी कठबूसली होकर घपगे राग-रग में मस्त रहने के सिद्धान्तों के थसाडा कोई धासम का सिद्धार्त उन्हूनि तहीं मपता्मी फिर मी जनता उन्हें देवता का प्रतिप्तिपि स्वीकार करके उन्हें पूजनीम स्थीनि देती थी। प्राह्मण उनसे राम भौए कप्ण के अवतार मानकर सह धामिक पुरूष वतभात रहते थे भौर उन्हें भर्मशार्ों के धाषार पर राग्य करते को पादप करतें से कमी-कभी सदारवादी पर्ममीरू शासक ऐसा करता भी भा परन्तु परिस्पितिएँं उन्हें तिरकुशता कौ शोर विवश शरदेती थीं । वुंदी राज्य था भष्यवा गा का सहाराब होता था । यह पद हाडा याठि के पेदा के उत्तर पिकाररियों में निहित था । हिम्दु सिद्धान्त के भ्रमुप्तार भासक का बढ़ा सका ही राफ्य-गही का हकदार होता था । यदि राणा के कोई पुत्र ने होता तो वह पद से नजदीक के सम्वरधी के फिसी सी पुर को गोंद से सकता था बूम्दी के हाड़ों को गद्दी प्राप्त करते समय १५६९ ई० के याद मुमलों कर फरमात लेना पड़ता था वाव में पूरा के पेशवार्मों व मराठा सरवारों सिल्मिया बे होस्कर को ममराना देसा पड़ता था तथा प्रप्रेगीकाप में रेजीजेन्ट की उपस्थिषि के दिना राजिक्क कानूनी नहीं समभद चाता था | यों हो दृन्यी भा शासक वूस्दी राज्य का सर्वे-सर्मा होता था । सिद्धाम्तिक कप में बहु राज राजेप्वर सहारा बारपिराण के बप में रहता पर श्यवज्ारिक हष्टिकोभ में वह किसी से किसी बाहा शक्तियों के प्रमाव में वना रहता था । बृस्दी के शाएकों को महाणवराथ की पदबी से मुषोभित क्या गीता था । राव रतन के काश थे बुन्दी का सप्या सुमफ्ाई छषिते रा इनायत था । इस सब्यें का रंग पीछा था । इस भण्े मे मावमें थो भद्रेशों डरा से पास हुए थे उमसें मध्य में उनके




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