हमारा गुजरात | Hamara Gujrat

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : हमारा गुजरात - Hamara Gujrat

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about वर्षादास - Varshadas

Add Infomation AboutVarshadas

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
्ि ं हमारा गुजरत जब उन पर धर्म बदलने के लिए जोर दिया गया तो बहुत से लोग खोरासान के पहाड़ों में छप गये। इस तरह छुपकर रहना भी जब मुश्किल हो गया तो वे पवित्र आरिन को साथ लेकर सात जहाजों का एक काफला बनाकर अपने अरब सागर के रास्ते से सौराष्ट्र के दीव बंदरगाह पर आये। कुछ वर्ष वहाँ बिताने के बाद उन्होंने दीव छोड़ दिया और वलसाड़ जिले के संजाण बंदरगाह पर कदम रखा । यह आठवीं शताब्दी की बात है। इस समय वहाँ जादव राणा नामके हिंदू राजा का शासन था। . पर्स के ये पारसी लोग राजा के पास गये और कहा हमें अपने राज्य में आसरा दीजिए । इतनी बड़ी संख्या में आये हुए निराश्रितों के प्रति राजा को सहानुभूति हुई। लेकिन उनके राज्य में इतने सारे विदेशियों को रखने की जगह नहीं थी । अपनी प्रजा के साथ इनको रखने का एक ही तरीका था । राजा ने एक कटोरा दूध मंगवाया । उस में चीनी मिलाई। चीनी घुल गई। दूध की एक बूंद भी बाहर नहीं गिरी। राज़ा यही समभाना चाहते थे कि दूध में जैसे चीनी घुल जाती है उसी तरह पर्स से आए हुए लोगों को वहाँ की प्रजा के साथ घुल मिल जाना होगा । इस संबंध में दो शर्तें भी रखी गईं। पहली शर्त यह थी कि पर्स की महिलाएँ गुजराती महिलाओं की तरह पूरा घाघरा पहनकर उन्हीं की तरह साड़ीः बाँधेंगी। और दूसरी शर्त यह थी कि उनको अपनी भाषा छोड़कर गुजराती भाषा अपनानी होगी। दोनों शर्तें सुनकर पारसी तो खुश हो गये । वे अपने धर्म की रक्षा करने के लिए अपने देश से भाग निकले थे। जादव राणा ने हिंदू धर्म अपनाने की शर्त नहीं रखी थी । अन्य दो शर्तें पारसियों को मंजूर थी । उन्होंने संजाण के पास उदवाड़ा गाँव में अपने साथ लाये हुए पवित्र अग्नि की स्थापना की। पारसियों का धर्मस्थान अशियारी कहलाता है| आज भी उदवाड़ा की अणियारी पारसियों का सब से बड़ा तीर्थस्थान माना जाता है । तब से पारसी गुजरात के गुजराती बन गये हैं स्वदेश-प्रेमी भारतवासी बन गये हैं । अंग्रेजों को देश से हटाने के लिए जब स्वतंत्रता-आंदोलन छिड़ गया तब दादाभाई नौरोजी फिरोजशाह मेहता सर दिनशा वाच्छा और भीकाजी कामा ने बहुत बड़ा योगदान दिया था । दादाभाई नौरोजी इन्डियन नेशनल कांग्रेस के स्थापकों में से एक थे। सन्‌ 1906 के अधिवेशन में उनको अध्यक्ष चुना गया था। फिरोजशाह मेहता स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हिस्सा ले रहे थे। उन्होंने बंबई में बोंबे क्रोनिकल नाम का अखबार शुरू किया । दिनशा वाच्छा अठारह वर्षों तक इंडियन नेशनल कांग्रेस के सचिव रहे और सन्‌ 1901 के अधिवेशन में अध्यक्ष भी चुने गये । भीकाजी कांमा पहली पारसी महिला थीं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में प्राणपण से भाग




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now