जीवन स्मृति | Jeevan Samrti Ac 959 1930
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.93 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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आय कवि की यह पदिछीं कविता-पानी रिम झिम, रिम झिम-
में पढा करता था । जब जब उन दिनों के आनन्द की
मुझे याद आती है तब तब कविता में यमकों की इतनी
आवश्यकता क्यों है ? यह मेरे ध्यान में आजाता है ।
झथोत्ू यमक के कारण एक प्रकार से शब्द का अन्त हो
जाता है और दूसरे प्रकार से नहीं होंता । अथोत् शब्दोधार
तो पूरा हा जाता है परन्तु उसका नाद घूमता रददता है । और
कान व मन में यमक रूपी गेंद को एक दूसरे की ओर फेंकने
की दरियत मानों ऊग जाती दे । इसीढिये ऊपर बतलाई हुई
कबिता के शब्द दिन दिन भर मेरे कान के आगे गूंजते
रहते थे ।
मेरी बहुत छोटी अवस्था की एक बात मुझे अच्छी तरह
याद दे कि हमारे यद्दां एक बृद्ध जमादार था । उसका नाम
था कैठास । बह हमारे कुटुम्बी जनों के समान ही माना
जाता था । वह बड़ा ठठोरा था । और छोटे से बड़े तक सब
की दिल्लगी उडाता था । विष कर नव विवाहित जमाई
और घर में आने जाने वाढे नये मनुष्यों को बद्द खूब ही
बनाता था । छोगों का यहद विश्वास था कि मरने के बाद भी
कैठास का यह रवभाव नददीं छूटा । उनके विश्वास का कारण
भी था । वह यह कि एक समय हमारे कुदुम्ब में 'पन्चेट
नामक यन्त्र द्वारा परढछोक गत व्यक्तियों से पड्ा-व्यवहार
करने का काम बहुत जोर पकड़ गया था । एक दिन इस
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