समुद्री पक्षी | Samudri Pakshi

Samudri Pakshi by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaरिचर्ड बाख - Richard Bakhवेद प्रकाश - Ved Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आसमान मे खां गया | वहां तो स्वर्ग जैसा था। प्रथ्वी से ऊपर उठते समय उसका शरीर चमकने लगा था। यहां वो, पृथ्वी की अपेक्षा, दुगनी गति से उड सकता था। अब यो आराम से ढाई सौ मील प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ सकता था। स्वर्ग में कोई सीमायें नहीं थीं। यहां पर कोई एक दर्जन चीलें होंगी। उसे वहां एकदम घर जैसा लगा। रेत पर उतरने के लिए उसे अपने पंखों को थोड़ा-सा मोडकर, ब्रेक लगाना पड़ा। बाकी चीलें, बिना अपने पंख को हिलाए ही उतर गयीं। उन्हें अपने शरीर और उड़ान पर गजब का नियंत्रण था। जीनाथन इतना थक गया था कि वो किनारे पर खड़ा-खड़ा ही सो गया | यहां पर उसे बहुत कुछ सीखने को था। धरती और यहां पर केवल एक अंतर था। यहां पर चीलें उसके जैसी ही सोचती थीं। उनमें से, सभी को, उडने में असीम आनंद आता था | उनके जीवन के उद्देश्य भी एक से थे-उड़मे में पारंगत होना । वे सब-की-सब बेहद कुशल चीलें थी और वो रोजाना घंटों उच्च-स्तरीय उड़ानों का अभ्यास करतीं थीं। अब अपने कबीले को जीनाथन लगभग भूल चुका था। एक दिन उसने अपने साथी से पूछा, “यहां इतनी कम चीज़ें क्‍यों हैं? पृथ्वी पर तो सैकड़ों-हजारों समुद्री चीलें थीं ॥” “हज़ारों-लाखों चीलों में से एक ही यहां तक आ पाती है। तुम उनमें से एक हो जीनाथन | हम लोगों ने न जाने कितने घाटों का पानी पिया और फिर यहां पहुंचे | तुमने एक बार में ही इतना कुछ सीख लिया, इसीलिए तुम्हें यहां आने के लिए, हमारी तरह जन्मों के जंजाल से नहीं गुजरना पड़ा ।” एक दिन, रात के समय, जौनाथन ने हिम्मत बटोरी और




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