अनौपचारिका | Anopacharika

Anopacharika by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaरमेश धानवी - Ramesh Dhanvi

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रमेश धानवी - Ramesh Dhanvi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ना अल- सलायका के पांच गीत अवसाद के नाम एक वह है, देने वाला हमारी रातों को दुख और विषाद | उसी ने तो भरी है सजगता हमारी आंखों के प्यालों में | हमने उसे पाया था बारिस की एक सुबह राह चलते | बड़े प्यार से उसका शाना थपथपा ढे डाला वह कोना जो धड़कता था हमारे दिल के कोने में । पता नहीं वह छोड़ गया हमको या फिर ओझल हो गया, हमारी नज़रों से सदा के लिए । वह भ्रम था मेरा, जहां भी हमारा अस्तित्व था पीछा करता रहा वह हमारा लगातार | १६... अन्लीपचारिका #15कुलागारब 86 0०6८ 2012 7826 16 काश | हम उस नीली बरसाती भोर में उसको मुंह न लगाते | साकी | जिसने भर दी हमारी आंखों में सजगता । छ दो कैसे बिसरा ढें हम व्यथा को ? कैसे भूल जायें हम उसको ? जिसे हम सदा ओढ़ते बिछाते हैं। और पीछा करते हैं उसके छोड़े गये यायावरी कदमों का और जब, हम सोते हैं तो जो आखरी चीज देखते हैं उसके भ्रभंग तेवर से निर्मित ढेवालय को और आंख खुलते ही फिर उसके दर्शन करते हैं। उसे ले चलते हैं हम अपने संग जहां तक ले जाती है हमारी इच्छाएं और जख्म! आखिर हम क्‍यों नहीं उसकी सीमा निर्धारित कर देते हैं। | अल-मलायका बगदाद में १६२३ में पैः कॉलेज बगदाद के अरबी विभाग से ली। आपबे राख, चांद-वृक्ष, लहरों का तल, समन्दर का रंग विषय | कुवैत विश्वविद्यालय में १६६६ से अध्य कविताएं बगदाद के विध्वंस पर चार पांच दहाई है जैसे वर्तमान बगदाद की स्थिति पर यह पंक्तियां से निकलती है वह साबित करती है कि इस पूरे ड है और उससे आज इन्सान पीढ़ी-दर-पीढ़ी जूझ हम न जायें तो यह कविताएं उस दुख को हमसे 1 किसी रूप से मौजूद रहता है और वह ताजिन्दग्ग यही सच इन कविताओं व सितम्बर-अक्टूबर, २०१२




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