दौड़ | Daur

Daur by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaममता कालिया - Mamta Kalia

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

ममता कालिया - Mamta Kalia

No Information available about ममता कालिया - Mamta Kalia

Add Infomation AboutMamta Kalia

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8/29/2016 'जब एथिक्स की यानी नैतिकता की बात आएगी मैं फिर कहूँगी कि विज्ञापन झूठ बोलते हैं। पर अभि, ऐसा नहीं है कि सिर्फ तुम ऐसा करते हो, सब ऐसा करते हैं। जनता को बेवकूफ बनाते हैं।' 'जनता को शिक्षा और सूचना भी तो देते हैं।! पवन ने कहा। 'पर साथ मैं जनता की उम्मीदों को बढ़ा कर उसका पैसा नष्ट करवाते हैं।' राजुल ने कहा। 'हाँ, हाँ, आज तक मैंने ऐसा विज्ञापन नहीं देखा जो कहता हो यह चीज न खरीदिए।' अभिषेक ने कहा, विज्ञापन की दुनिया खर्च और बिक्री की दुनिया है। हम सपनों के सौदागर हैं, जिसे चाहिए बाजार जाए, सपनों और उम्मीदों से भरी ट्यूब खरीद लें। ये विज्ञापन का ही कमात्र है कि हमारे तीन सदस्योंवाले परिवार में तीन तरह के टूथपेस्ट आते हैं। अंकुर को धारियोंवात्रा टूथपेस्ट पसंद है, तुम्हें वह षोडषीवाला और मुझे साँस की बू दूर करनेवाला। टूथपेस्ट तो फिर भी गनीमत है, तुम्हें पता है- डिटरजेंट की विज्ञापनबाजी में और भी अँधेर है। हम लोग सोना डिटरजेंट की एड फिल्म जब शूट कर रहे थे तो सीवर्स के क्लीन डिटरजेंट से हमने बाल्टी में झाग उठवाए थे। क्लीन में सोना से ज्यादा झाग पैदा करने की ताकत है।' पवन ने कहा, 'दरअसल बाजार के अर्थशास्त्र में नैतिकता जैसा शब्द ला कर, राजुल, तुम सिर्फ कनफ्यूजन फैला रही हो। मैंने अब तक पाँच सौ किताबें तो मैनेजमेंट और मार्केटिंग पर पढ़ी होंगी। उनमें नैतिकता पर कोई चैप्टर नहीं है।' स्टैला डिमैलो इंटरप्राइज का्पेरिशन में बराबर की पार्टनर थी और उसकी कंपनी गुर्जर गैस कंपनी को कंप्यूटर सप्लाई करती थी। पहले तो वह पवन के लिए कारोबारी चिट्ठियों पर महज एक हस्ताक्षर थी पर जब कंप्यूटर की दो-एक समस्या समझने पवन शिल्पा के साथ उसके ऑफिस गया तो इस दुबली-पतली हँसमुख लड़की से उसका अच्छा परिचय हो गया। स्‍्टैला की उम्र मुश्किल से चौबीस साल थी पर उसने अपने माता-पिता के साथ आधी दुनिया घूम रखी थी। उसकी माँ सिंधी और पिता ईसाई थे। माँ से उसे गोरी रंगत मिली थी और पिता से तराशदार नाक-नक्श। जींस और टॉप में वह लड़का ज्यादा और लड़की कम नजर आती। उसके ऑफिस में हर समय गहमागहमी रहती। फोन बजता रहता, फैक्स आते रहते। कभी किसी फैक्टरी से बीस कंप्यूटर्स का एक साथ ऑर्डर मित्र जाता, कभी कहीं कांफ्रेंस से बुलावा आ जाता। उसने कई तकनीशियन रखे हुए थे। अपने व्यवसाय के हर पहलू पर उसकी तेज नजर रहती। इस बार पवन अपने घर गया तो उसने पाया वह अपने नए शहर और काम के बारे में घरवालों को बताते समय कई बार स्टैला का जिक्र कर गया। सघन बी.एससी. के बाद हार्डवेयर का कोर्स कर रहा था। पवन ने कहा, 'तुम इस बार मेरे साथ राजकोट चलो, तुम्हें मैं ऐसे कंप्यूटर वर्ल्ड में प्रवेश दिलाऊँगा कि तुम्हारी आँखें खुली रह जाएँगी।' सघन ने कहा, 'जाना होगा तो हैदराबाद जाऊँगा, वह तो साइबर सिटी है।' 'एक बार तुम एंटरप्राइज ज्वाइन करोगे तो देखोगे वह साइबर सिटी से कम नहीं।' माँ ने कहा, 'इसको भी ले जाओगे तो हम दोनों बिल्कुल अकेले रह जाएँगे। वैसे ही सीनियर सिटीजन कॉलोनी बनती जा रही है। सबके बच्चे पढ़ लिख-कर बाहर चले जा रहे हैं। हर घर में, समझो, एक बूढ़ा, एक बूढ़ी, एक कुत्ता और एक कार बस यह रह गया है।' 16/46




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now