बहादुर | Bahadur

Book Image : बहादुर  - Bahadur

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अमर कान्त - Amar Kant

No Information available about अमर कान्त - Amar Kant

Add Infomation AboutAmar Kant

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
-जअरे वह सब झूठ है। मैं तो पहले ही जानती थी कि वे लोग बच्चों को कुछ देना नहीं चाहते, इसलिए अपनी गलती और लाज छिपाने के लिए यह प्रपंच रच रहे हैं। उन लोगों को क्‍या मैं जानती नहीं? कभी उनके रुपये, रास्ते में गुम हो जाते हैं... कभी वे गलती से घर पर छोड़ आते हैं। मेरे कलेजे में तो जैसे कुछ हॉंड रहा है। किशोर को भी बड़ा अफ़सोस है। उसने सारा शहर छान मारा, पर बहादुर नहीं मिला। किशोर आकर कहने लगा-अम्मा, एक बार भी अगर बहादुर आ जाता तो मैं उसको पकड़ लेता और कभी जाने न देता। उससे माफ़ी माँग लेता और कभी नहीं मारता । सच, अब ऐसा नौकर कभी नहीं मिलेगा। कितना आराम दे गया है वह। अगर वह कुछ चुराकर ले गया होता तो सनन्‍्तोष हो जाता। निर्मला आँखों पर आँचल रखकर रोने लगी। मुझे बड़ा क्रोध आया। मैं चिल्लाना चाहता था, . पर भीतर-ही-भीतर मेरा कलेजा जैसे बैठ रहा हो। में वही चारपाई पर सिर झुकाकर बैठ गया। मुझे एक अजीब-सी लघुता का अनुभव हो रहा था। यदि में न मारता, तो शायद वह न जाता। मैंने आँगन में नज़र दौड़ायी । एक ओर स्टूल पर उसका बिस्तरा रखा था। अलगनी पर उसके कुछ कपड़े टेंगे थे। स्टूल के नीचे वह भूरा जूता था, जो मेरे साले साहब के लड़के का था। मैं उठकर अलगनी के पास गया और उसके नेकर की जेब में हाथ डालकर उसके सामान निकालने लगा-वही गोलियाँ, पुराने ताश की गड़ी, खूबसूरत पत्थर, ब्लेड, कागज की नावें... 16 / बहादुर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now