बाल गीत साहित्य | BAL GEET SAHITYA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
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निरंकार देव सेवक - NIRANKAR DEV SEVAK
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). १८ : बालगीत साहिए्य
हैं। पर सूर ने उन्हें अपने इष्ट देव कृष्ण की लीलाओं का वणन करने के विचार से ही
. लिखा था अतएवं भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनमें वह स्वाभाविक सरलता नहीं
जो बालगीत के लिये अपेक्षित होती है। सूरदास के अधिकांश पदों में बाल-रूप, चेष्टाओं,
और बाल-स्वभाव का वर्णन तो है पर उनमें बच्चों की भावनाओं और कल्पनाओं का वर्णन
. उनके अनुरूप गीतों के रूप में नहीं हुआ है। अतएव उन्हें बालगीतों की श्रेणी में रख
सकना कठिन है।
. (३) सुक्तक--हिन्दी में लिखे गये मुक्तकों में कवित्त, सवइये, दोहे, छन््द, चतुष्प-
दियाँ और वह सभी छोटी-छोटी कवितायें आती हैं जो किसी एक छोटे से भाव को व्यक्त
करने के लिये लिखी गई हों। इस श्रेणी में मतिराम, देव, भूषणं, विहारी, रहीम, गिरधर
तथा आधुनिक काल के प्रसाद, पन््त, निराला, दिनकर, इत्यादि सभी की फुटकर कवितायें
आती हैं। बालगीत भी अलग-अलग एक-एक भाव को लेकर लिखे जाने के कारण इसी
श्रेणी के अन्तर्गत लिये जा सकते हैं। मुक्तकों के भाव और भाषा यदि सरल हों तो सभी
प्रकार के मुक््तकों की शैली में बच्चों की कवितायें लिखी जा सकती हैं।
(४) मुक्त छन््द और प्रयोगवादी शैली की कवितायें--इस श्रेणी में उन सब कवि-
ताओं को लिया जा सकता है जो कवितायें पिगल शास्त्र के परम्परागत नियमों और रस
सिद्धान्त तक की अवहेलना करके आधुनिक काल में लिखी गई हैं। निराला जी को इस शैली
की रचनाओं का जन्मदाता माना जाता है। मुक्त छन्द में गति, लय, स्वरों का ध्यान तो
प्रायः रखा भी जाता है पर तुकों का बन्धन स्वीकार नहीं किया जाता। मुक्त छन्द की
कविता में कुछ पंक्तियाँ दो-दो और कुछ २०-२० शब्दों की होती है । प्रयोगवादी शेल्री
में भावों की तारतम्यता का बन्धन भी स्वीकार नहीं किया जाता। प्रतीकवादी कविताओं
में प्रतीकों के सहारे भावों का संकेतमात्र कर दिया जाता है। हिन्दी में इस शैली के कवियों
में निराला, अज्ेय और धर्मवीर भारती इत्यादि हैं। बच्चों के लिये कवितायें इस शैली
में नहीं लिखी जा सकतीं क्योंकि बच्चों के कान गति, लय, स्वर और तुकों से युक्त कविता
को ही कविता समझते हैं। उनको इतना ज्ञान ही नहीं होता कि प्रतीक और प्रयोगवादी
शैली की कविताओं को समझ सकें। मुक्त छन्द के उतार-चढ़ाव में उनके भावों से विमुख
हो जाने का भय भी सदा बना रहता है। पर सम्भव है भविष्य में बड़ों की तुकान्त
कविताओं की तरह बाल गीतों के बजाय मुक्त छन््द में ही बच्चों की कवितायें लिखी जाने
लगें। वह बच्चों का कितना मनोरंजन कर सकेगी यह समय ही बतायेगा।
बड़ों की तरह बच्चों के पास न तो अपना कोई पृूर्वंसंचित ज्ञान-कोष होता, है,
न शब्द भण्डार। वह शब्दों के अभिधेयार्थों को ही समझ सकते हैं, लाक्षणिक और व्यंगार्थों को
नहीं! अतएवं अलंकारों को सजा कर लाक्षणिक व्यंगार्थों से पर्ण कविता उनके लिये लिखना
बैसा ही है जैसा किसी अनजान व्यक्ति के लिये ग्रीक लैटिन भाषा में कविता लिखना।
बच्चों के लिये सीधी-सादी इतिवृत्तात्मक कविताएँ ही लिखी जा सकती हैं। बड़ों के काव्य
ममंश्ञों के बीच भले ही उन्हें निम्न श्रेणी की कविता समझा जाये। पं० रामनरेश त्रिपाठी
मे बड़ों की इसी प्रकार की कविता की ओर संकेत करते हुए अपनी पुस्तक कविता कौमुदी की
मूमिका में लिखा था--आज-कल की हिन्दी कविता की ओर जब हम ध्यान देते हैं तो बहुत
तिराश होता पढ़ता है। कोरी तुकबन्दी को कविता का नाम दिया जा रहा है। बक, कोयल,
बड़ों और भच्चों की कविता : १९ .
और कौवे को मोर बताया जा रहा है। जिस पद्य में न रस है न माधये, न प्रसाद ने अलं-
कार उसे कविता की उपाधि से विभूषित किया जा रहा है। आज की कबिता में | काव्य के
गुण न होन से पढ़ते समय ऐसा जान पड़ता है मानों जीभ के मैदान पर शब्द लद॒दू चला
रहे हैं।! पर हिन्दी के बाल पाठकों की दृष्टि से इस निम्नकोटि की शैली में लिखी का
भी उनकी रुचि की सर्वश्रेष्ठ कविता ही सकती है। द हर
पता हआ। का संसार उनके आस-पास की वस्तुओं, व्यापारों और मनुष्यों तक ही सीमित
होता है। बड़ों के सामने पृ्वे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनायें परम्परागत मान्यतायें विष्वास
और दृष्टिकोण सपनों की तरह नाचा करते हैं। पर बच्चों की दृष्टि उन सब से ै मुक्त और
निर्मल होती है। वह सांसारिक राग-देष, माया-मोह इत्यादि . से भी निलिंप्त न गते हैं।
अपने मन के सारे अज्ञान और अभावों को अपनी कल्पना से ही पूरा कर लेने की अद्भुत _
शक्ति उनमें होती है। कभी-कभी वह कल्पना को यथार्थ से भी अधिक सत्य और प्रत्यक्ष
मान लेते हैं। इसलिये बच्चों की कविता बड़ों की कविता से आकार-प्रकार, रूप-रंग और
. भावना-कल्पना में भिन्न होती है। बड़ों की मान्यताओं के आधार पर हम बच्चों की कविता
की विवेचना ही नहीं कर सकते। उसके लिये हमें अध्ययन, आलोचना और प्रशंसा के क्छ
नये ही सिद्धान्त तथा मापदंड स्थिर करने होंगे तभी हम उनके मर्म को भली भांति समझ
सकते हैं।
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