एक अध्यापक की डायरी के कुछ पन्ने | Ek Adhyapak Ki Diary Ke Kuch Panne

Ek Adhyapak Ki Diary Ke Kuch Panne by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaहेमराज भट्ट - Hemraj Bhatt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आज मैंने किसी भी कक्षा में कोई भी विषय नहीं पढ़ाया। केवल कक्षा तीसरी में पर्यावरण अध्ययन में पढ़ाए गए पहले पाठ पर री-कैप करवाया | जब मैंने बच्चों पूछा कि मैंने अब तक तुम्हें क्या-क्या बताया तो केवल दो बच्चों ने अपेक्षित उत्तर दिए- सजीव और निर्जीव वस्तुएँ, भगवान और आदमी की बनाई हुई चीजें। बाकी बच्चों के उत्तर थे- कुर्सी, पत्तियाँ, टहनियाँ, आदमी, भैंस आदि | मैंने इस कक्षा में लगातार तीन दिन तक चंदन शीर्षक का पाठ पढ़ाया और मानव निर्मित, प्राकृतिक वस्तुएँ और सजीव-निर्जीव के बारे में चर्चा कराई तथा इन अवधारणाओं को समझाने का प्रयास किया। मैं बीस में से सोलह बच्चों से “प्राकृतिक” शब्द का स्पष्ट और शुद्ध उच्चारण नहीं करवा सका। ऐसे में मैं झुंझला उठता हूँ। हालाँकि यह भाषागत समस्या है और यह यकीन मुझे था कि मेरी बात को बच्चे समझ रहे थे और पूछने पर अपेक्षित उदाहरण दे रहे थे। परंतु सभी बच्चों को अपने परिवेश में हिंदी के शब्द सुनने और बोलने के लिए न मिलने के कारण नितांत अपरिचित शब्दों का उच्चारण करने, उन्हें समझने और याद रखने में खासी मशक्कत करनी पड़ती है। आज ठीक एक बजे बच्चों की छुट्टी की और मेरा सारा वक्‍त कमरों को व्यवस्थित करवाने में ही बीत गया। घर आकर भोजन किया और तीन बजे अपराहन तक विश्राम किया। तीन बजे से चार बजे तक कक्षा दो के बच्चों के लिए एक कहानी टाइप की और प्रिंट निकाल कर उसे लेमिनेट किया | इस कहानी “दो बकरियाँ” से कक्षा दो के बच्चों से उन बच्चों को पढ़वाने का अभ्यास कराछँगा जिन्हें वर्णणाला भी ठीक से पहचाननी नहीं आ रही है। चार बजे विद्या मंदिर के आचार्य जी आए, एक घंटा उन्हें कम्प्यूटर सिखाया और फिर उनके साथ बाजार टहलने निकल गया। साढ़े आठ बजे से डायरी लिखी। दस बजे डायरी पूरी की, कादंबिनी का अगस्त अंक पढ़ा और साढ़े दस बजे सो गया। 14 & एक अध्यापक की डायरी के कुछ पन्ने




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