दिवोदास | DIVODAS

DIVODAS by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० | दिवोदास 'यूरा विश्वास था, किलात असाधारण शत्रु थे | उनको दबाना बहुत कठिन काम था | दास युरी धोर जंगल में थी, पहाड़ वहाँ से बिल्कुल समीप था | बल्कि कह सकते हैं, वह पहाड़ के चरणों में ही बनायी गयी थी*। पुरु शत्रु को बिना सजग किये उसके पशुओं पर टूट पड़ना चाहते थे । अमी उषा की हल्की किरणों पूव में छुलकने लगी थीं, जबकि आय घुड़सवार लकड़ियों के प्राकार के पास पहुँच गये | वह चुपचाप' गायों के बेड़े के पास पहुँच जाते, पर किलातों के कुर्ते असावधान नहीं थे । उनके भोंकते ही एक ज्षण में सारी किलातपुरी सजग हो गयी । गंगरा और गोधा की आवाज से कान फटने लगे | जरा देर में किलात योद्धा बेड़ों के पास थे, जहाँ कुत्ते पहले ही पहुँच चुके थे | दोनों दल एक- दूसरे के इतने नजदीक थे कि बाण चलाने का अवसर नहीं था । 'उनके खडग पास नहीं पहुँच सकते थे, सिफ भालों से युद्ध जारी हुआ | इसी बीच किलात स्त्रियाँ किलकारी मारते पहुँचीं, और पत्थरों की वर्षा करने लगीं | कुछु ही समय बाद प्राची में सूथ का लाल गोला निकल आया | अब अन्यकार का कहीं पता नहीं था । पुरु एक बार तो किलातों के प्रचएढ प्रहार से निराश हो गये, पर 'उनके हाथों के लम्बे मालों ने बड़ी सहायता की | किलात मो से पीछे हटने के लिए, मजबूर हुए | इसी समय कुछ पुरुओं ने घोड़े से 'उतर कर लकड़ी की भीत को हटा दिया | घुड़सवार उसी से भीतर घुसे | थोड़ी देर तक किलात स्तब्ध-से हो गये । पर, उन्हें अपनी अजेयता का अभिमान था | वह अनन्त काल से जाड़ों को बिताने के लिए पशु-प्राणियों के साथ यहाँ आया करते थे | पवत से दूर हटना उनके लिए ऋषिय बात थी | पर जाड़ों में ऊपर के पहाड़ों पर जब कई हाथ बफ पड़ जाती तो पशुओं ओर प्राणियों को बड़े कष्ट का सामना करना पड़ता | श्रादमी को इडडी चीरनेवाली सर्दी सताती और पशुश्रों के लिए घास-चारा दुलम हो जाता । इससे बचने के _




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