जब पापा बच्चे थे | JAB PAPA BACHCHE THE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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देर आइसक्रीम बेचने के बाद मैं स्टेशन चला जाया करूंगा। वहां मैं कुछ डिब्बों की शंटिंग करूंगा और फिर जाकर कुछ आइसक्रीम और बेच आऊगा। इसके बाद मैं फिर स्टेशन चला जाऊंगा और कुछ डिब्बों की दंटिंग कर लूंगा और इसके बाद जाकर कुछ आइसक्रीम और बेच लूंगा । इसमें ज़्यादा मुश्किल नहीं होगी, क्योंकि अपना ठेला मैं स्टेशन के पास शा खड़ा करूंगा और इसलिए गाड़ियों के लिए मुझे ज़्यादा दूर नहीं जाना पड़ेगा। की. हर कोई फिर हंस पड़ा। पापा गुस्से में आकर बोले : “अगर तुम मेरी हंसी उड़ाओगे, तो मैं साथ में चौकीदार भी बन जाऊगा। आख़िर रात में करने को कुछ होता भी क्‍या है! ' सभी कुछ तय हो गया। लेकिन फिर पापा को वांयुयान-चालक बनने की सृूकी। इसके बाद उन्होंने अभिनेता बननें की सोची। लेकिन दादा: एक बार उन्हें कोई कारखाना दिखाने ले गये, तो उन्होंने टर्नर बनने की ठान ली। इसके अलावा वह जहाज़ी भी बनना चाहते थे। या कम से . कम वह चरवाहा बनकर लाठी हिलाते हुए गायों के पीछे घूमते रहने में अपने दिन बिताना तो चाहते ही थे। आख़िर उन्होंने तय किया कि वह असल में जो बनना चाहते हैं, वह है कुत्ता। उस दिन वह दिन भर चारों हाथ-पैरों पर इधर-उधर भागते हुए अजनबियों पर भौंकते रहे। एक बूढ़ी महिला ने उनके सिर को सहलाना चाहा, तो पापा ने उन्हें काटनें की कोशिश तक की। पापा ने भौंकना तो बड़ी अच्छी तरह से सीख लिया , लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी वह अपने पैर से कान के पीछे खुजाना नहीं सीख पाये। उन्होंने सोचा कि अगर वह बाहर जाकर अपने पालत्‌ कुत्ते के साथ बैठ जायें, तो शायद वह कान के पीछे खुजाना ज़्यादा जल्दी सीख जायेंगे। और यही असल में उन्होंने किया भी। उसी बक्‍त एक अजनबी फ़ौजी अफ़सर उधर से गुज़रा। वह खड़ा होकर पापा को देखने लगा। वह उन्हें कुछ देर तक देखता रहा और फिर उसने पूछा: . क्‍या कर 'रहे हो तुम ? द “ मैं कुत्ता बनना चाहता हुं,” पापा ने जवाब दिया। 268 तब उस अजनबी ने कहा: “ क्‍या तुम आदमी नहीं बनना चाहते ?” “ आदमी मैं काफ़ी दिन रह चुका! पापा ने कहा। “ अगर तुम कुत्ते भी नहीं बन सकते तो तुम कैसे आदमी हो ? क्‍या आदमी ऐसा ही होता है? “ अच्छा , फिर वह कैसा होता है? पापा ने पूछा। “ इसके बारे में तुम अपने आप सोचो ! “ अफ़सर ने कहा और वहां से चला गया। वह न तो हंसा और न मुस्कराया। लकिन पापा को अचानक अपने पर बड़ी शर्म आई। और वह सोचने लगे। वह सोचते ही रहे, और जितना ही उन्होंने सोचा, उन्हें अपने पर उतनी ही शर्म आई। अफ़सर ने उन्हें कोई बात भी नहीं समभाई थी, पर अचानक ही यह बात पापा की समभ में आ गई कि वह रोज़-रोज़ अपना इरादा नहीं बदल सकते। और सबसे ब्रड़ी बात यह थी कि वह समभ गये कि वह इतने छोटे हैं कि, इस बात को नहीं जान सकते कि वह क्‍या बनें। अगली बार जंब उनसे यही सवाल पूछा गया, तो उन्हें अफ़सर की बात याद आ गई, और उन्होंने कहा : “मैं आदमी बनना चाहता हूं!” इस पर कोई भी नहीं हंसा और पापा समभ गये कि यही सबसे अच्छा जवाब है। आज भी वह यही समझते हैं। पहली बात तो यही है कि हमें अच्छा आदमी बनना चाहिए। वायुयान-चालक , चरवाहा और आइसक्रीम . बेचनेवाला- हर किसी के लिए यही बात सबसे महत्त्वपूर्ण है। और आदमी को यह जानने की सचमुच ज़रूरत नहीं कि अपने पैर से अपने कान के पीछे कैसे खुजाया जाये।




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