मेरी आत्मकथा | MERI ATMAKATHA

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लियो टॉलस्टॉय -Leo Tolstoy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंदर हाथ डालकर सीने पर सलीव का निशान बनाता हूं ताकि कोई देखने न पाये, फिर भी हज़ारों चीज़ें मेरा ध्यान भठकाती हैं, और अपनी बदहवासी में मैं प्रार्थना के वही शब्द कई वार दोहरा डालता हूं। सड़क के किनारे-किनारे बल खाकर जाती हुई पटरी पर धीरे- धीरे चलती हुई कुछ आक्ृतियां दिखायी देती हैं: ये तीर्थयात्री हैं। उनके सिर पर मैले रूमाल वंधे हुए हैं; उनकी पीठ पर वर्च की छाल की धज्जियों के बंडल हैं; उनके पांवों पर गंदी, फटी-पुरानी पदिटियां लिपटी हुई हैं और उन्होंने छाल के जूते पहन रखे हैं। अपनी लाठियां एक साथ भूलाते हुए और हम लोगों की ओर प्रायः बिल्कुल ही न देखते हुए वे धीरे-धीरे एक क़तार में आगे बढ़ रही हैं। मैं सोचने लगता हूं: वे कहां जा रही हैं और क्‍यों ? क्या उनका सफ़र बहुत लंबा है? और सड़क पर उनकी जो दुबली-पतली परछाइयां पड़ रही हैं क्या वे शीघ्र ही उनके रास्ते पर पड़नेवाली बेद वृक्ष की छाया के साथ मिलकर एक हो जायेंगी ? इतने में चार वदली के घोड़ों के साथ एक गाड़ी तेजी से हमारी ओर आती हुई दिखायी देती है। दो ही सेकंड बाद वे चेहरे जो दो अर्शीन * की दूरी पर बड़ी जिज्ञासा से मुस्कराते हुए हमें देख रहे थे, हमारे पास से होकर आगे निकल गये हैं ; विश्वास नहीं होता कि ये चेहरे बिल्कुल अजनबी लोगों के थे और यह कि शायद मैं अब उन्हें कभी नहीं देख पाऊंगा। इसके बाद पसीने से तर भवरे घोड़ों की एक जोड़ी, जिनके लगाम लगी हुई है, सरपट भागती हुई सड़क के किनारे से निकल जाती है; उनकी जोतों को बम के पट्टों के साथ गांठ बांधकर जोड़ दिया गया है; उनके पीछे बदली के घोड़ों की निगरानी करनेवाला लड़का उदास धुन का गाना गाता हुआ घोड़े पर सवार चला जा रहा है; उसकी मेमने के ऊन की टोपी एक ओर को भुकी हुई है, बड़े-बड़े वूटों में उसकी लंबी-लंबी टांगें घोड़े के दोनों तरफ़ भूल रही हैं ; घोड़े पर दूगा ** कसा हुआ है। उसके चेहरे और उसके रवैये से ऐसी काहिली और लापरवाही टपक रही है कि मुझे ऐसा लगता है कि बदली के * अर्शीन - पुरानी रूसी माप, जो ०,७ मीटर के वरावर है।- अनु० ४ दगा-घोड़े के साज़ का एक हिस्सा। - अनु० १६५




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