क्या आदमी था 'राय' | Kya Aadmi Tha 'Rai'

Kya Aadmi Tha 'Rai' by अरविन्द गुप्ता - Arvind Guptaजावेद सिद्दीकी - Javed Siddique

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

जावेद सिद्दीकी - Javed Siddique

No Information available about जावेद सिद्दीकी - Javed Siddique

Add Infomation AboutJaved Siddique

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
8/2/2016 में भड़क गया, 'अरे यार, तुम भी कमाल करती हो प्रेमचंद की कहानी, सत्यजित राय का स्क्रीन प्लेअगर जरा-सी भूल चूक हो गई, तो लोग पकड़ के मारेंगे।' 'कोई नहीं मारेगा, कुछ नहीं होगा।' किस्सा मुख्तसर तय ये पाया कि हम दोनों मिलकर लिखेंगे। जबान मेरी, तज़िबा उनका। शम्‌अ को तज़िबा के साथ सलीका भी था। वे कुछ छोटी-मोटी फिल्मों और 'गर्म हवा' में अपना हाथ साफ कर चुकी थीं। मगर यहाँ खालिस उर्दू त्रिखनी थी। सबसे पहले हमने स्क्रिप्ट पढ़ा। मानकदा ने (वह लोग जो सत्यजित राय के करीबी थे, मानकदा कहा करते थे। मानक उनका घरेलू नाम था) एक छोटी-सी कहानी को काफी फैला दिया था और उस वक्‍त की सियासत को बड़ी खूबसूरती से कहानी के अंदर ले आए थे। सबसे बड़ी खूबी ये थी कि उन्होंने अवध के आखिरी ताजदार वाजिद अली शाह का मजाक उड़ाने के बजाए उनकी कमजोरियों का जिक्र किया था, मगर उसे एक ऐसा बादशाह दिखाया था, जो अपनी कमजोरी की वजह से नहीं, बल्कि अंग्रेजों की मक्कारी की वजह से सल्तनत खो बैठता है। हमारे सामने बड़ा मसला ये था कि अगर हम वही जबान लिखते हैं, जो उस वक्‍त राइज थी, तो आज के फिल्‍म देखने वाले समझ ही नहीं पाएँगे, क्योंकि मुहावरा बदल चुका है। अल्फाज और उनका इस्तेमाल भी वह नहीं है, जो था। चुनांचे हमने तय किया कि हम एक ऐसी जबान लिखेंगे, जो आसान और आमफहम होगी। मगर सुनते हुए ऐसा लगेगा जैसे वह डेढ़ सौ साल पहले की उर्दू है। हमने ये भी तय किया कि किरदारों की जबान मुख्तलिफ होगी और उसमें समाजी, कल्चरल और कारोबारी झलक दिखाई देगी। अगर आप 'शतरंज के खिलाड़ी' के मुकालमों की जबान पर गौर करें, तो आपको एहसास होगा कि मीर और मिर्जा की जबान अलग है। वाजिद अली शाह के लफ्ज दूसरे हैं। इसमें ऐसी नग्मगी है जो बंदिश में आ जाए, तो ठुमरी मालूम होगी। दरबारियों की जबान पर फारसी का असर है, अवाम अवधी बोलते हैं और खवातीन कहावतों और मुहावरों से सजी हुई रवॉ-दवाँ बोली बोलती हैं। हमने कोशिश करके पूरी फिल्म में ऐसा कोई लफ्ज नहीं इस्तेमाल किया, जो कानों को बुरा या मालूम हो। उर्दू का कमाल ये है कि इसमें एक ला-महसूस मूसीकी है। अगर कलम किसी जानकार के हाथ में है, तो लफ्ज नहीं, सुर बन जाते हैं। मेरे और शम्‌अ के जोश का आलम ये था कि अपना होश नहीं था। रोजाना बारह-चौदह घंटे काम करते, मगर जरा-भी थकान का एहसास नहीं होता। स्क्रिप्ट धीरे-धीरे आगे बढ़ता गया और बहुत-से राजों से पर्दा भी उठता गया। मात्रूम हुआ कि सत्यजित राय तक मेरा नाम पहुँचाने वाली शम्‌अ ही थीं और इस सिफारिश के पीछे एक कहानी थी। जब प्रोड्यूसर सुरेश जिंदल ने मानकदा को राजी कर लिया कि वे हिंदी या उर्दू में फिल्म बनाएँगे और उन्होंने प्रेमचंद की कहानी 'शतरंज के खिलाड़ी' का इंतिखाब किया, तो सवाल पैदा हुआ कि इसके मुकालमे (संवाद) कौन लिखेगा हर अच्छे स्क्रीनप्ले की तरह 'शतरंज के खिलाड़ी' में भी मतलब और जरूरत को समझाने के लिए अंग्रेजी मुकालमे लिख दिए गए थे, मगर वे मुकालमे नहीं थे, वे तो इशारिए थे जिनकी मदद से उसी तारीखी फिल्म के मुकालमे लिखे जाने थे। सुरेश जिंदल का खयाल था कि शतरंज के खिलाड़ी के डायलॉग राजेंदर सिंह बेदी से 4/9




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now