Book Image : गुलामगिरी  - Gulamgiri

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महात्मा जोतीराव फुले - Mahatma Joteerav Phule

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 बड़े सुअर भाई को मार कर नहीं खाना चाहिए। उसने इसके पहले से ही कुछ बंदोबस्त क्यों नहीं करके रखा था? हाय! पद्मा सुअरी वराह आदिनारायण की माँ ही तो है न! और उसने इस तरह से अपने नन्हे-मुन्ने अबोध बालक की हत्या क्‍यों की? 'बालहत्या' शब्द का अर्थ सिर्फ बच्चों को जान से मारना ही होता है, फिर वह बच्चा किसी का भी क्‍यों न हो। किंतु इसने अपने पैदा किए हुए अबोध बच्चे की ही हत्या करके उसको खा लिया। इस तरह के अन्याय का अच्छा अर्थबोध हो, ऐसा शब्द किसी शब्दकोश में खोजने से भी नहीं मिलेगा। यदि इसको डाकिनी कहा जाए तो डाकिनी भी अपने बच्चों को नहीं खाती, यह एक पुरानी कहावत है। उस वराह की पद्मा माता को इस तरह का अघोर कर्म करने की वजह से नरक की यातनाएँ भोगने से मुक्ति मिले, इसलिए उसने ऐसा पाप मुक्ति का कर्म किया, इसका कहीं कोई जिक्र भी नही मिलता, इसका हमें बड़ा अफसोस है। धोंडीराव : वराह की सुअरी माता का नाम यदि पद्मा था तो इससे यह सिद्ध होता है कि उसके सुअर पति का कुछ ना कुछ नाम होना ही चाहिए कि नहीं? जोतीराव : पद्मा सुअरी के पति का नाम ब्रह्मा था। धोंडीराव : इससे यही समझ में आ रहा है कि प्राचीन काल में जानवर मनुष्यों की तरह आपस में एक दूसरे को ब्रहमा, नारद और मनु, इस तरह के नाम देते थे। उनके नाम इन गपोड़ी ग्रंथकारों को कैसे समझ में आए होंगे? दूसरी बात यह कि पद्मा सुअरी ने वराह को उसके बचपन में अपने स्तन से दूध पिलाया ही होगा, इसमें कोई संदेह नहीं। किंतु बाद में उसके कुछ बड़ा होने पर गाँव के खंड़हरों में बहुत ही कोमल फूल पौधों का चारा चरने की उसे आदत लगी होगी कि नहीं, यह तो वही वराह आदिनारायण ही जाने। इस तरह से उनके (धर्म) ग्रंथों में कई तरह के महत्वपूर्ण सवालों के प्रमाण नहीं मिलते। इसलिए मुझे लगता है कि धर्मग्रंथों में लिखा यह सब झूठ है कि वराह सुअरी से पैदा हुआ है और इस तरह की झूठ-मूठ की बातें शास्त्रों में लिखते समय उन ग्रंथकारों को लज्जा भी नहीं आई होगी? जोतीराव : यह कैसी बेतुकी बात है कि तुम्हारे जैसे ही लोग तरह के झूठ-मूठ के ग्रंथों की शिक्षा की वजह से ब्राहमण-पंडा-पुरोहितों और उनकी संतानो के पाँवों को धो कर पानी भी पीते हैं। अब तुम ही बताओ, इसमें तुम निर्लज्ज हो या वे? धोंडीराव : खैर, इन सब बातों को अब छोड़ दीजिए। आपके ही कहने के अनुसार, उस मुखिया का नाम वराह कैसे पड़ा? जोतीराव : क्योंकि उसका स्वभाव, उसका आचार-व्यवहार, उसका रहन-सहन बहुत ही गंदा था और वहा जहाँ भी जाता था, वही जंगली सुअर की तरह झपट्टा मार कर अपना कार्य सिद्ध करता था। इसी की वजह से महाप्रतापी हिरण्यगर्भ और हिरण्यकश्यप नाम के जो दो क्षत्रिय थे, उन्‍होंने उसका नाम अपनी निषेध की भावना व्यक्त करने के लिए सुअर अर्थात वराह रखा। इससे वह और बौखला गया होगा और उसने अपने मन में उनके प्रतिशोध की भावना रखते हुए उनके प्रदेशों पर बार-बार हमले करके, वहाँ के सभी क्षेत्रवासियों को तकलीफें दे करके, अंत में उसने एक युद्ध में (हिरण्याक्ष) हिरण्यगर्भ को मार डाला। इसका परिणाम यह हुआ कि देश के सभी क्षेत्रपतियों में घबराहट पैदा हो गई और वे कुछ लड़खड़ाने लगे और इसी समय वराह मर गया। परिच्छेद : पाँच 16/59




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