सात पैसे | SAAT PAISE

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छेड़छाड़ पसंद नहीं। और अगर कहीं नाराज हो गए तो वे गायब हो जाएंगे ओर फिर कभी हमारे हाथ नहीं आने के। आहिस्ता, भैया, रुपया बड़ी नाजुक चीज़ होती है, उसे मुलायमियत से हाथ लगाना चाहिए। वह इज्जत पसंद होता है, चट से बुरा मान जाता है, तुनकमिजाज सेठानी की तरह... तुम्हें कोई तुकबन्दी याद नहीं है जो उसे घर से बाहर रवींच लाए? ” उफ, उनकी चबर-चबर पर हम केसे हसे थे! मेंने जो स्तुति छेड़ी वह सचमुच अजीब थी। वह इस तरह “चाचा सिक्के, झूठ न समझो, तेरे घर में आग लगी हे।” इतना कहकर मैंने दराज फिर से सीधा कर दिया। उसके नीचे हर तरह की रददी चीजें थी, पर सिक्के... एक भी नहीं। मेरी मां मुंह बिगाड़कर ढेर को क्रेदती ही रही, पर उससे क्‍या बनता। “कितने दुख की बात है,” उन्होंने कहा, “कि हमारे यहां कोई मेज़ नहीं है। अगर यह दराज़ मेज पर ऑंधाया जाता तो ज़्यादा अच्छा लगता ओर तब सिक्‍के भी टिके रहते।” मेंने सारी चीजें समेटकर फिर से दराज़ में भर दी। इस बीच मां सोच में डूबी रही। वे अपने दिमाग पर सारा जोर लगाकर सोचती रही कि उन्होंने ओर कहीं तो कुछ ओर पैसे नही डाल रकखे हैं, पर उन्हें कुछ भी याद न आया। अचानक मुझे एक बात सूझ गई। ८ ना जगह जहा मां, मुझे एक जगह मालूम है जहां एक सिक्का हे।” “कहां बिट्ट्‌? चलो उसे पकड़ लें, कहीं बाद में बरफ की तरह पिघल न जाए।” “कांच की अलमारी के दराज में पहले एक | पैसा पड़ा रहता था।” “वाह मुन्ने अच्छा हुआ तुमने पहले नहीं




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