शोध दिशा | Shosh Disha
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
64
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कहानी लि
की हर चीज़ में पैसा बनाता है, खाने बेठता है, तो खाता ही
चला जाता है।' गजाधर बाबू को बराबर यह महसूस होता रहता
था कि उनके घर का रहन-सहन और खर्च उनकी हेसियत से
कहीं ज़्यादा है। पत्नी की बात सुनकर लगा कि नौकर का खर्च
बिल्कुल बेकार है। छोटा-मोटा काम है, घर में तीन मर्द हें,
कोई-न-कोई कर ही देगा। उन्होंने उसी दिन नौकर का हिसाब
कर दिया। अमर दफ्तर से आया तो नौकर को पुकारने लगा।
अमर की बहू बोली, 'बाबूजी ने नौकर छुडा दिया है।'
ड़ क्यों 2 7
“कहते हैं खर्च बहुत है।'
यह वार्तालाप बहुत सीधा-सा था, पर जिस टोन में बहू
बोली, गजाधर बाबू को खटक गया। उस दिन जी भारी होने के
कारण गजाधर बाबू टहलने नहीं गए थे। आलस्य में उठकर बत्ती
भी नहीं जलाई। इस बात से बेख़बर नरेंद्र माँ से कहने लगा,
' अम्मा, तुम बाबूजी से कहतीं क्यों नहीं? बेठे-बिठाए कुछ नहीं
तो नौकर ही छुड़ा दिया। अगर बाबूजी यह समझें कि मैं साइकिल
पर गेहूँ रख आय पिसाने जाऊँगा, तो मुझसे यह नहीं होगा।' 'हाँ
अम्मा', बसंती का स्वर था, 'मैं कालेज भी जाऊँ ओर लौटकर
घर में झाड़ू भी लगाऊँ, यह मेरे बस की बात नहीं हे।'
“बूढ़े आदमी हैं', अमर भुनभुनाया, “चुपचाप पड़े रहें। हर
चीज़ में दखल क्यों देते हैं?” पत्नी ने बड़े व्यंग्य से कहा, ' और
कुछ नहीं सूझा तो तुम्हारी बहू को चौके में भेज दिया। वह गई
तो पंद्रह दिन का राशन पाँच दिन में बनाकर रख दिया।' बहू
कुछ कहे, इससे पहले वह चोके में घुस गईं। कुछ देर में अपनी
कोठरी में आईं और बिजली जलाई तो गजाधर बाबू को लेटे
देख बडी सिटपिटाईं। गजाधर बाबू की मुखमुद्रा से वह उनके
भावों का अनुमान न लगा सकीं। वह चुप, आँखें बंद किए लेटे
रहे।
[]
गजाधर बाबू चिट्ठी हाथ में लिए अंदर आए और पत्नी
को पुकारा। वह भीगे हाथ लिए निकली और आँचल से पोंछती
हुई पास आ खड़ी हुई। गजाधर बाबू ने बिना किसी भूमिका के
कहा, 'मुझे सेठ रामजीमल की चीनी मिल में नोकरी मिल गई
है; खाली बैठे रहने से तो चार पैसे घर में आएँ, वही अच्छा हे।
उन्होंने तो पहले ही कहा था, मैंने ही मना कर दिया था।' फिर
कुछ रुककर जेसे बुझी हुई आग में एक चिंगारी चमक उठे,
उन्होंने धीमे स्वर में कहा, 'मैंने सोचा था कि बरसों तुम सबसे
अलग रहने के बाद अवकाश पाकर परिवार के साथ रहूँगा। खैर,
परसों जाना है। तुम भी चलोगी?' “मैं?' पत्नी ने सकपकाकर
कहा, “मैं चलूँगी तो यहाँ का कया होगा? इतनी बडी गृहस्थी,
फिर सयानी लड॒की....
बात बीच में काटकर गजाधर बाबू ने हताश स्वर में कहा,
“ठीक है, तुम यहीं रहो। मैंने तो ऐसे ही कहा था।' और गहरे
मौन में डूब गए।
[]
नरेंद्र ने बड़ी तत्परता से बिस्तर बाँधा और रिक्शा बुला
लाया। गजाधर बाबू का टीन का बक्स ओर पतला-सा बिस्तर
उस पर रख दिया गया। नाश्ते के लिए लड्डू और मठरी की
डलिया हाथ में लिए गजाधर बाबू रिक्शे पर बेठ गए। दृष्टि
उन्होंने अपने परिवार पर डाली। फिर दूसरी ओर देखने लगे और
रिक्शा चल पड़ा। उनके जाने के बाद सब अंदर लोट आए, बहू
ने अमर से पूछा, 'सिनेमा ले चलिएगा न?' बसंती ने उछलकर
कहा, ' भैया, हमें भी।'
गजाधर बाबू की पत्नी सीधे चौके में चली गईं। बची हुई
मठरियों को कटोरदान में रखकर अपने कमरे में लाईं और
कनस्तरों के पास रख दिया, फिर बाहर आकर कहा, ' अरे नरेंद्र,
बाबूजी की चारपाई कमरे से निकाल दे। उसमें चलने तक की
जगह नहीं है।'
(11219 8106९9790006 ४]४०
1801501
एश 53705-2265 ए$/
श्री रामअवतार गुप्त मुज़्तर का निधन
प्रसिद्ध शायर श्री रामअवतार गुप्त
मुज़्तर का देहांत 10 अगस्त 2010
को हृदयाघात से हो गया। बुलंदशहर
के परगना जहाँगीराबाद के गाँव साँखनी
के एक वेश्य परिवार में जन्म हुआ।
उत्तर रेलवे के संडीला रेलवे स्टेशन
से रोज़ी-रोटी शुरू करने के बाद
नजीबाबाद रेलवे स्टेशन से टी०्सी० पद
से सेवानिवृत्त हुए और यहीं अपना स्थायी आवास बना
लिया।
मुज़्तः जी के दो काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए हैं-
सीपियों में समंदर तथा सफरी-ए-आखरे शब तीसरा
संकलन भी शीघ्र प्रकाशित हो रहा है।
जनपद की शान श्री रामावतार गुप्ता मुज़्तर के निधन
पर 'शोध-दिशा' परिवार अपनी हार्दिक संवेदना प्रकट
करता है।
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है. हम ४४६
16 ० जुलाई-सितंबर 2010
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