दियंका तोम्चिक | DIYANKA TOMCHICK
 श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children

लेखक  :  
                  Book Language 
हिंदी | Hindi 
                  पुस्तक का साइज :  
4 MB
                  कुल पष्ठ :  
25
                  श्रेणी :  
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इस तरह मुझे पता चला कि उन्हें फल भी पसन्द हैं। यहाँ तक कि उन्हें पता था कि क्या
स्वादिष्ट है और क्या नहीं। क्योंकि वे हमेशा पके हुए फल ही खाते थे।
इसके बाद मैं उन्हें अक्सर ही चीकू, आलूबुखारा और सेब की टहनियों को हिलाकर ये फल
उन्हें खाने को देती ।
दियांका और टॉमचिक को बागीचे के एक-एक कोने के बारे में पता था। लेकिन वे कभी
भी घर तक नहीं आते। क्योंकि उन्हें दूसरों का साथ पसन्द नहीं था। मैं ही एक अकेली इन्सान
थी जिसे वे स्वीकार करते थे और प्यार करते थे। वे मेरा स्वागत करने आते। मुझे नजदीक॑ से
सूँघते, -मेरे ऊपर कूदते, और अपने पंजे मेरे कन्धों पर रखते और मेरा चेहरा चाटते।
एक बार मैंने सबके बीच हॉँका कि वो बच्चे मेरी आवाज़ पहचानते हैं। कइयों की आवाज़
में मेरी आवाज़ को पहचान जाएँगे।
“यह सही नहीं है। वो तुम्हारी आवाज़ नहीं पहचान सकते! उन्हें बस खाना चाहिए। अगर
वे भूखे हैं तो इससे उन्हें कोई मतलब नहीं कि कौन उनको खाना देता है।
मैंने कहा, “नहीं ऐसा नहीं होता है। चलो कोशिश करते हैं और देखते हैं।”
यह प्रयोग देखने आठ बच्चे आए। यहाँ तक कि बड़ों को भी जिज्ञासा होने लगी।
सभी बागीचे के द्वार पर जमा हो गए।
मेरी बहन ने कहा, “रुको! मुझे खाने का कटोरा दो।”
वह कटोरा लेकर बागीचे में गई। बगीचे में वह दोनों को आवाज़े लगाने लगी। काफी देर
वह आवाज़ लगाती रही कोई फायदा नहीं हुआ । कोई भी बाहर नहीं आया वह निराश होकर वाएद्न
आ गई। फिर, दूसरे ने अपना भाग्य आजमाया और फिर तीसरे ने। सभी को एक मौका दिया
गया। आखिर में मैंने कहा :
“मुझे कटोरे की भी जरूरत नहीं। वो बिना इसके भी मेरे पास आएँगे।” सच बताऊँ, मैं
जितने विश्वास के साथ कह रही थी, अन्दर ही अन्दर मुझे उतना विश्वास नहीं था। क्या होगा
अगर वे नहीं आएँगे?
“दियांका! टॉमचिक”, मैंने आवाज़ लगाई मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था।
. तब सभी ने उन दोनों को भागकर मेरे पास आते देखा। वे तुरन्त आए। वो मेरे पुकारने का:
ही इन्तजार कर रहे थे।
“देखो! तुम कहते हो कि ये मेरी आवाज़ नहीं पहचानते !”
.. 16 » दियांका-टॉमचिक
					
					
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