हिंदी साहित्य - एक रेखा चित्र | HINDI SAHITYA - EK REKHA CHITRA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बहुजन हिताय ! बहुजन सुखाय !! पर, जब आठवीं शताब्दी की साँक विदा होने लगी, मंत्रयान अंधकार के गते में डूब चला। मीन, मांस, मंद्र और मैथुन तक ने उसमें अ्वेश पा लिया। जिस नारी को गौतम ने मुक्ति-मार्ग की बाधा कहा था, उसी को उनके अनुयायी, मुक्ति का साधन मान कर, थ लिए डोलने लगे। यह ओर एक कदम नीचे की अवस्था थी, जिसे इतिहास ने वच्रयान कहकर पुकारा । इन वज्रयानी साधकों की ठोलियाँ आंध्र की राजधानी पैठन.घन्य- कटक ओर श्रीपवेत से होती हुईं नालंदा और विक्रमशिला जा पहुँची । “बहुजन हिंताय ! बहुजन सुखाय !|!? की अमत-ध्वनि से ।लंदा और विक्रम शिला के शून्य जनपथ भी एक बार मुखरित हो उठे। तथागत के इस प्रदेश में आकर वज््यानियाँ को जैसे अपना. खोया हुआ ज्ञान मिल गया। वे सिद्ध हो गए। कक पर, भगवान बुद्ध की तरह वे पूरे निरीश्वखादी बने न रह सके। उन्हें लगा, इश्वर या इश्वर-जेसी कोई सत्ता कहीं जरूर है।... . गुरु का महत््व भी उन्होंने माना। उसके बिना गंतब्य तक पहुँच पाना कैसे संभव हो सकेगा ? राह कितनी कठिन है ! पग- पग पर माया की बिछुलन, कदम-कदम पर काँटे ! पर शते है ; क्‍ गुरु योग्य होना चाहिए। अंधा अंधे को कूएँ से निकालेगा तो क्या, ख़ुद भी गिर जायगा-- जाव ण॒ आप जणिजई ताप ण शिष्य. करेई। पक (




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