देशभक्त डाकू | DESHBHAKT DAKU

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दिविक रमेश - DIVIK RAMESH

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/110/2016 हुआ तो क्रांति आगे कैसे बढ़ेगी। उन्हें एक तरकीब सूझी। अँग्रेजों को उल्लू बनाने की। उन्होंने पुलिस को सूचना दी कि वे सरकारी गवाह बनना चाहते हैं। यानी पुलिस के अपने आदमी। यह भी कहा कि वे क्रांतिकारियों को पकड़वाने में मदद भी करेंगे। अँग्रेजों की पुलिस के पास अपना दिमाग तो कम ही था। गेंदाल्ाल की चाल में फँस गई। गेंदालाल को सरकारी मुखबिर बना लिया। पर गेंदालाल तो भारत माँ के सच्चे सपूत थे। एक दिन मौका पाकर एक दूसरे मुखबिर रामनारायण के साथ गायब हो गए। कोटा पहुँच गए। पर रामनारायण भी उस्ताद निकला। एक दिन गैंदाल्ाल को कोठरी में बंद कर सारा समान ले चंपत हो गया। पर उसने पुलिस को गेंदालाल के बारे में कुछ नहीं बताया। गैंदालाल तीन-चार दिन, भूखे-प्यासे कोठरी में पड़े रहे। बीमार तो थे ही। पर साहस नहीं छोड़ा था। हर क्षण देश को आजाद कराने की ही सोचते। किसी तरह कोठरी से निकले। पैदल ही आगरा की ओर चल पड़े। इधर पुलिस ने गेंदालाल के परिवार को तंग कर डाला था। यहाँ तक कि परिवार भी गेंदालाल को गिरफ्तार कराने की सोचने लगा। बीमारी की गंभीर हालत में ही दिल्‍ली पहुँचे | छिपने के लिए एक प्याऊ पर नौकरी शुरू की। पर बीमारी थी कि बढ़ती चली गई। उन्हें एक ही अफसोस सताता कि क्रांति के लिए वे जितना काम कर सकते थे, नहीं कर पा रहे। अब तो उन्हें बेहोशी भी आ जाती थी। किसी ने उनकी पत्नी को सूचित कर दिया पत्नी आ गई। उनकी खूब सेवा की। मौत उन पर छा चुकी थी। पर वे जीना चाहते थे। वे मोक्ष भी नहीं चाहते थे। दूसरे जन्म में भी क्रांतिकारी डाकू ही बनना चाहते थे। उन्होंने चाहा कि बच्चे उनकी पसंद का गीत सुनाएँ। बड़ों ने इशारा किया। बच्चों ने उत्साह से गाया - अरे गुलामी! नानानाना हो आजादी हाँ हाँ हाँ हाँ उछल उछल्र कर कूद कूद कर कहते बच्चे हाथ उठाए सुन ले सुन ले दुनिया सारी आजादी हम सबको भाए अरे गुलामी! नाना ना ना हो आजादी हाँ हाँ हाँ हाँ तुम भी गाओ हम भी गाएँ हाथी गाए चिड़ियाँ गाएँ पर्वत गाए नदियाँ गाएँ आजादी के गाने गाएँ अरे गुलामी! नानानाना हो आजादी हाँ हाँ हाँ हाँ 4/5




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