विज्ञान और उनकी शिक्षा | VIGYAN OR UNKI SHIKSHA

VIGYAN OR UNKI SHIKSHA  by अनीश मोकाशी - ANISH MOKASHIपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनुभवों के वृत्तान्तः बच्चों के लिए नए रास्ते ऐसे बच्चों का शिक्षक था जिन्हें उस स्कूल में पढ़ते हुए चार से पाँच साल हो गए थे। उनमें से अधिकांश को मुझसे बात करने में कोई संकोच नहीं था - उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं कौन था, क्या करता था, मेरे माता-पिता कहाँ रहते थे। और फिर, उन्होंने अपने बारे में मुझे ढेर सारी बातें बताईं - उन्हें क्‍या पसन्द था, उनका सबसे अच्छा दोस्त कौन था और उनके कितने भाई-बहिन थे। मेरी पहली कक्षा में, उस कक्षा के आठ साल के बच्चों ने एकदम अनायास ही मेरे लिए एक समूह नृत्य करने का निर्णय लिया। उन्होंने मुझे अपने बीच सहज महसूस कराने की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। उनके बोलने में या चेहरे पर भय का कोई आभास नहीं था। जब भी उन्हें कक्षा के लिए कोई रोचक या प्रासंगिक बात मिलती तो वे तुरन्त उसे बताते थे। उन्होंने सहज ही मेरा नाम अनीश अण्णा रख दिया। ध्वनि से अच्छी शुरुआत मैंने ध्वनि से शुरुआत करने का निर्णय लिया क्योंकि ध्वनि एक ऐसा विषय है जिससे बच्चे आसानी से जुड़ सकते हैं और यह उनके विज्ञान के पाठ्यक्रम के निर्धारित विषय-प्रसंगों की सूची में भी था। मैंने उन्हें एनसीईआरटी, एचबीसीएसई (स्मॉल साइंस सीरीज़), एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम द्वारा तैयार की गई विज्ञान की गतिविधि-आधारित पाठ्यपुस्तकों (बाल वैज्ञानिक) के बारे में तथा अरविन्द गुप्ता के कार्य के बारे में बताया। नई- नई युक्तियाँ निकालकर तथा कभी-कभी इन स्रोतों से मिले विचारों को अपने तरीके से उपयोग करते हुए, हमने ध्वनि से सम्बन्धित अनेक अवधारणाओं की छानबीन की। हमने शुरुआत स्कूल के वातावरण की ध्वनियों का अवलोकन और निरीक्षण करने से की - बहुत गहराई से सुनते हुए हमने उनकी दिशा पहचानी, उनके स्रोत को ढूँढ निकाला और फिर एक ध्वनि मानचित्र तैयार किया। कुछ बच्चों ने अवलोकन का यह अभ्यास अपने घर पर भी दोहराया और तस्वीरों सहित विस्तृत ध्वनि-मानचित्र तैयार किए। एक आठ साल के बच्चे सबरीश ने अपनी सूची में “जब रात को सन्‍्नांटा होता है, तब ट्यूब लाइट से आने वाली आवाज़” तक को शामिल किया। अगले दिन, हमने नारियल के कठोर बाहरी खोलों पर प्लास्टिक की थैलियाँ बाँधकर बजाने वाले ड्रम तैयार किए। कुछ बच्चों ने इनके भीतर कुछ बीज और 298 बच्चों के साथ विज्ञान छोटे केकड़ डाल दिए और इस तरह झुनझने जैसे बजने वाले ड्रम बनाए। हम इस विचार तक पहुँच सके कि हर ध्वनि के पीछे कोई ऐसी चीज़ होती है जो कम्पन करती है, फिर चाहे वह हमारा गला हो या तबला, गिटार का तार, रबर का छल्ला, पत्ती या कागज़ की बनाई गई सीटी। हमने देखा कि किस तरह एक बोतल में अलग-अलग तलों तक पानी भरने के बाद बोतल के मुँह पर से फूँकने पर निकलने वाली आवाज़ का स्वर-मान (उसका भारी या पतला होना जो उसकी आवृत्ति से जुड़ा हुआ है) बदलता है। एक बार, हमने स्वर-मान के बारे में बात करने के लिए एक बाँसुरी का इस्तेमाल करते हुए उससे अलग- अलग स्वर निकाले। बच्चों को बहुत मज़ा आया और उन्होंने बार-बार गुज़ारिश करके मुझे काफी देर तक बाँसुरी बजाने के लिए मजबूर किया। मुझे यह एहसास हुआ कि जो चीज़ इन बच्चों को पसन्द आ जाती थी वे मन लगाकर उसके पीछे पड़ जाते थे। चित्र 1: बालटी कला बालटी कला अगली कक्षा में मैं पानी से भरी एक बालटी लेकर आया, यह समझाने के लिए कि जिस तरह पानी में लहरें फैलती हुई यात्रा करती प्रतीत होती हैं* उसी तरह किसी वस्तु से निकलने वाले कम्पन हवा में फैलते हुए यात्रा करते हैं और हमें ध्वनि सुनाई देती है। उस दिन, सुबह की रोशनी बालटी में भरे पानी की सतह पर पड़ रही थी और उसका प्रतिबिम्ब कमरे की छत पर पड़ रहा था। बालटी को सिर्फ हल्का-सा +असल में पानी में कंकड़ डालने पर पैदा होने वाली लहरें फैलती नहीं हैं। एक छोटा-सा लकड़ी या कागज़ का टुकड़ा पानी की सतह पर रख के, फिर उसमें लहरें पैदा करके, आप यह देख सकते हैं। 299




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