छुईया की छ्बनी | CHUIYAN KEE CHHABNI
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
772 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गांव में तो हर चीज के लिए जुगाड़ बैठाना पड़ता है। इस बार कुछ
ज्यादा ही समय लग गया। जैसा कि होता है, बडे लोगों की बीसों
बातें सुननी पड़ीं। और फिर पैसों के लिए भी ठाकुर ने लटकाकर
रखा।
किसी तरह दो-चार रुपये मिल गए। सोचा कि वापसी में
मेवापुरी के पुराने दोस्तों से दुआ-सलाम कर लूं। वहीं पर बन्नो भी
मिल गई और उसने अब तक का हाल सुनाया। मेरा मन तो बहुत
था कि आगे का हाल मैं खुद अपनी आंखों से देख लूं। लेकिन जेब
की हालत कमजोर थी और वादोवालां के व्यवहार से मन कुछ
कैसा-कैसा हो गया था। इसलिए घर लौटने की फिक्र लगी थी।
झोला बांधकर मैं मेवापुरी से निकल पड़ा। फाटक के पास
किसी हड॒बडैया ड्राइवर ने जीप तले एक कुत्ते को दबा दिया था।
उसकी अरथी दो कदम आगे बढ़ा दिया। केसी अजीब है यह
दुनिया!
अब मैं सोचता हूं, मैं कौन होता हूं बन्नो की कथा सुनाने
वाला? वह खुद अपना किस्सा बता सकती हे, बताना चाहती भी
है वह। इसलिए आगे की कथा बननो आपको खुद ही सुनाएगी।
अब वह चित्र भी है, चित्रकार भी, अपनी जिंदगी खुद बनाने के
काबिल। मैं चला छुंडया की ओर बन््नो का इंतजार करने।
छवबनी का अक्स
ऐ अन्ना! तुम यहीं बेठे हो? चलो, चलो, घर चलो। चाय
पिलाऊंगी *” अरे, एक मिनट, जरा छबनी से मिल आऊं।
न-न, कुछ चढ़ाया नहीं था। वह महादेवी मिली थी न, मेवापुरी
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