सामाजिक विवेक की शिक्षा | SAMAJIK VIVEK KI SHIKSHA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
93
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक समूह - Pustak Samuh
No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh
शिवरतन थानवी - Shivratan Thanavi
No Information available about शिवरतन थानवी - Shivratan Thanavi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तब याद आया था कि बच्ष्चों के लिए कृष्णकुमार की एक पुस्तक का नाम था
'अब में नहीं पढ़ँगा'। प्रकाशकों की पुस्तक सूचियों से, पत्रिकाओं की समीक्षाओं
से और लेखों से अच्छी-अच्छी पुस्तकों की सूचना मिलती है। मेरे प्रिय लेखक
जिस पुस्तक या फिल्म की चर्चा करते हैं, प्रशंसा करते हैं, बह पढ़ने -देखने को में
आकुल हो जाता हूँ। इन चर्चाओं -समीक्षाओं से अपनी पसन्द की पुस्तकों -फिल्मों
का हम चब्नन कर सकते हैं। बाणी, राजकपल, शजपाल, ग्रन्थशिल्पी, आधार
प्रकाशन आदि के प्रकाशन प्माचार भी निकालते हैं और पुस्तक-सूचियाँ भी।
प्रकाशन -समाचार जैसी पत्रिकाओं में किसी-किसी पुस्तक या लेखक पर चिस्तार
से चर्चा भी होती है। बे रोचक और पठनीय होती हैं।
हम चारों तरफ नज़र रखें तो कितना आनन्द है? पढ़ें वही जो पसन्द हो,
उतना ही जितना रुचिकर लगे, किन्तु अपना संस्कार जरूर करें, पुस्तक संस्कृति
को अपने जीवन का अंग ज़रूर बनाएँ। तभी यह शिक्षक जीवन सार्थक है। माँ-
बाप भी घरशाला में पहले शिक्षक हैं। वे भी स्वाध्याय के संस्कार से त्रंचित
क्यों रहें? किंचित्-किंचित्, थोड़ा-थोड़ा, सभी हाथ बढ़ाएँ तो हमारी भावी
पीढ़ी अध्ययनशील-प्रगतिशील और विवेकवबान-विचारबान बनेगी , औष्ठ और
उदात्त भाबों से प्रमृद्ध बनेगी। अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के लिए हमें कुछ तो
माथापच्ची' करनी ही चाहिए। महान् शिक्षक गुरुदेव रवीन्द्रनाथ रैगोर, डॉ.
सर्वपल्ली राधाकृष्णन्, प्रो. ए.पौ.जे. अब्दुल कलाम, मैडम मारिया मोंटेसरी, जॉन
होल्ट तथा गिजुभाई बश्रेका का उदाहरण हमारे सामने है जो जीवन भर लगातार
अध्ययनशौल बने रहे हैं। कितना ही अच्छा हो यदि हमारे शिक्षक और माँ-बाप
साक्षात् गिजुभाई बन जाएँ।
30 साम्ताजिक विन्नेक की शिक्षा
भारत में शिक्षा का भविष्य
भारत में शिक्षा का भविष्य कैप्ता रहेगा, यह कोई भविष्यवाणी का विषय
नहीं है। बह हमारे सामर्थ्य, शक्ति और प्रय॒त्नों के अनुसार ही बनेगा। आज तक
हमारी शिक्षा प्रणाली ने कई रूप धारण किए हैं। लोकतन्त्र है, सत्ता बंदलती है
तो कोई परिवर्तन आ जाता है। न बदले सत्ता तो लोक को सन््तोष देने को कोई
कमीशन, कोई कमेटी बन जाती है। “आमूलचूल परिवर्तन' का उद्घोष करते हुए
कोई व्यावसायिक शिक्षा को आदर्श मानता है, तो कोई सर्वांगीण विकास को
शिक्षा का प्रमुख अंग बताता है। ये सब अन्तर्विरोधी बातें हैं पर बड़ा देश है तो
अन्तर्विरोध तो होंगे ही।
गांधीजी के प्रभाव में हमने बुनियादी शिक्षा शुरू की फिर बन्द भी कर दी।
अंग्रेजी राज को हटाया तो अंग्रेजी शिक्षण ही हटाने का जुनून छाय्ा। ऊपर की
कक्षाओं में अंग्रेजी रखी तो नितान्त अनमने भाव से। आज हर राज्य इसे सिर पर
बिटा रहा है। पहली कक्षा से ही अनिवार्य बनाने को तत्पर है। अंग्रेजी माध्यम की
तिजी स्कूलों की संख्या तेजी से बढ़ती जा रही है। सरकारें खुद सरकारी स्कूलों में
अंग्रेजी के स्तर को उठाने में जुटी हैं। लैंग्वेज लैब तक लगाने की चर्चाएँ शुरू हो
गई हैं। हर राज्य में इंग्लिश इन्स्टीट्यूट स्थापित कर विशेष प्रशिक्षण तो कभी का
प्रारम्भ हो गया था, अब उपस्तकौ नया बल मिला है।
कुछ विद्वानों ने कहा विज्ञान और उद्योग की तरह पक्की शिक्षा हो, वहीं
दूसरे कुछ विद्वानों ने कहा कि ऐसी यन्त्रबत् शिक्षा भी कोई शिक्षा है? मौलिक
चिन्तन सृजन की क्षमता उत्पन्न करनी है तो बच्चों को अपनी चाल से, अपनी
रुचियाँ निर्मित करते हुए अपने सामर्थ्य व क्षमता के अनुसार पढ़ाई और परिवेश
से प्रभाव ग्रहण करते हुए स्वतः आगे बढ़ने दो। उसमें ग्रहणशीलता जगाओ।
उसे अपनी दृष्टि, अपने निजी जीव्रन-दर्शन का निर्माण करने दो। गांधीजी की
'बुनियादी तालीम' की लहर अभी भी गई नहीं है, बह तो अन्तःसलिला हो गईं है
अज्ञेय की कविता की तरह---'अरे! अन्तःसलिला है रेत'।
भारत को शिक्षा के भविष्य को उज्ज्वल बनाना है तो हमें गांधी, गिजुभाई
और अनुपम मिश्र की शिक्षाओं पर ध्यान देना होगा। अन्य और कौन-कौन हैं उन्हें
पातत में ज्िक्षा का भविष्य 51
User Reviews
No Reviews | Add Yours...