आसिफंजहाँ की बहू | AASIFJAHAN KI BAHU

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रशीद जहाँ - RASHID JAHAN

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शकील सिद्दीकी - SHAKEEL SIDDIKI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 आइशा बेगम जो पहले ही पेट को जोर से दबाए थीं मुद्ठियाँ भींचकर आधी खड़ी होकर बहन का पेट भींचने लगीं। जच्चा तड़प गई और चीख पड़ी, आपा, खुदा के लिए बस करो। मेरा तो दम निकला...| ऐ, बस, लो छुट्टी हुई।' दाई ने उसे उलट-पुलटकर देखा, यह लो बड़ी बेगम, देख लो पूरी है पूरी। फिर बाद में न कह देना। यह कहकर उसने आँवल आसिफजहाँ की तरफ बढ़ाई और फिर जितनी औरतें थीं सबने बारी-बारी देखी और अपनी राय जाहिर की। ऐ बीवी, अभी से पेट ढीला न करो। खून बहुत निकल रहा है। जरा कसके पकड़े रहो। दाई ने कहा, आइशा ने भरपूर जोर लगा दिया। नाल काट लूँ। इतने में खून रुक जाएगा। यह कहकर दाई ने फिर से अँगूठे से डण्डी पकड़ी और उसको फिर जोर- जोर से सूतना शुरू किया। फिर एक कच्चे डोरे से, जो पास ही पलँग पर बड़ी देर से पड़ा था, नाल बाँधकर फिर इधर-उधर निगाह फिराकर एक जंगियाया हुआ चाक्‌ नीचे से उठाकर उसको साफ किया। खून का बहना अभी भी ज्यादा मिकदार में जारी था। मसीतन अब एक फतिहाना अन्दाज से पल्ग से उतरी। खड़े होकर एक अँगड़ाई ली, ऐ है, बड़ी बेगम तुम हट जाओ, तुमसे यह नहीं उठेंगी। साबिरा बीबी, तुम और कैसर आ जाओ। साबिरा और कैसर ने नीचे हाथ डाला और जच्चा की हाय-हाय की परवाह न करके उसकी कमर को कोई आठ इंच ऊपर उठाया और मसीतन ने एक छ: गज त्रम्बी पट्टी को जच्चा के पेड़ पर इधर से उधर लपेटना शुरू किया। खून का बहना अब कुछ कम हो गया था। लेकिन कुबरा अब एक धुले कपड़े की तरह सफेद और धज्जी की तरह लागर हो चुकी थी। बच्चा हो गया। आँवल गिर गई। अब अल्लाह अपना फजल करेगा तो ताकत भी आ जाएगी। अब आसिफजहाँ बच्ची की तरफ मुखातिब हुईं और लड़की का मुँह देखकर बोलीं, साँवली है। ऐ इसका क्या जिक्र है। अगर काली भी होती तो क्या मैं छोड़ देती। ऐ मसीतन, अब बच्ची को नहलाओगी या नहीं। मसीतन ने बच्ची को नहलाया और आसिफजहाँ के बार-बार कहने पर भी लड़की को उनको देने से इन्कार कर दिया, बीबी, बड़ी मिन्‍नती की है। मैं यूँ न दूँगी। मेरा हक पहले दो। ऐ लो, यह कौन-सा नया दस्तूर तुमने निकाला है, जो तुम्हारा हक है वह मैं पहले ही आँवल के कूँड़े में डाल चुकी हू... मसीतन दाँत फाड़कर बोली, अल्लाह कसम, अच्छा क्या है? पाँच रुपये हैं, और क्या होते? खुदा कसम बड़ी बेगम पाँच रुपये तो मैं हरगिज नहीं लूँगी। 4/6




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