हमारी खेती का वसीयत नामा | HAMARI KHETI KA VASIYATNAMA

HAMARI KHETI KA VASIYATNAMA  by अल्बर्ट हॉवर्ड - ALBERT HOWARDपुस्तक समूह - Pustak Samuhप्रभाकर पंडित - PRABHAKAR PANDIT

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

अल्बर्ट हॉवर्ड - Albert Howard

No Information available about अल्बर्ट हॉवर्ड - Albert Howard

Add Infomation AboutAlbert Howard

पुस्तक समूह - Pustak Samuh

No Information available about पुस्तक समूह - Pustak Samuh

Add Infomation AboutPustak Samuh

प्रभाकर पंडित - PRABHAKAR PANDIT

No Information available about प्रभाकर पंडित - PRABHAKAR PANDIT

Add Infomation AboutPRABHAKAR PANDIT

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
पर अनुसंधान कर इसके अनुभव लिये थे । इस अनुसंधान के दौरान उन्होंने अनुभव किया कि फसलों, पशुओं और मनुष्य की रोग़ग्रसिता का मिटटी की उपजाऊ शक्ति के साथ सीधा संबंध होता है । जैविक खाद निर्माण करने की प्रणाली विकसित करने का एक और उद्देश्य था । पूसा के कृषि अनुसंधान केन्द्र पर पौध प्रजनन कार्य के दौरान वर्ष 1905 से 1924 के 19 वर्षों के अनुभवों ने उन्हे यह भरोसा दिलाया था कि मिट्टी में ह्यूमस की भरपूर उपलब्धि से ही उन्नत किस्मों से अच्छी उपज मिलती है । उन्नत किस्मों के बीज से मात्र 10 प्रतिशत उपज में बढ़ोत्तरी प्राप्त की जा सकती है जबकि मिट्टी में ह्यूमस की भरपूर मात्रा होने पर उन्नत किस्म से 100 प्रतिशत अधिक उपज मिल सकती है । ह्यूमस के बिना 10 प्रतिशत अतिरिक्त उपज प्राप्त करने की जद्दोजहद से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। दूसरे शब्दों में मिट्टी की उत्पादन क्षमता ही उन्नत बीज के स्थान पर अधिक उपज देने में सक्षम होती है । वर्ष 1918 के आते आते इन दो विचारधाराओं से यह सुनिश्चित हुआ कि कृषि अनुसंधान में काफी घालमेल है और अनुसंधान केन्द्रों द्वारा अपने कार्यक्रमों को सुधारना जरूरी है । पौध प्रजनन शास्त्र (प्लांट ब्रीडिंग), रोग शास्त्र (प्लांट पैथॉलॉजी), कीटविज्ञान (एन्टोमॉलाजी) तथा अन्य विभागों को बंद करना होगा । उपजाऊ मिट्टी और स्थानीय किसानों द्वार की जाने वाली परंपरागत खेती का विचार करना पहली आवश्यकता है । पूसा कृषि अनुसंधान केन्द्र इतनी गंभीरता से इन मुद्दों पर विचार ही नहीं कर सकता क्योंकि खेतों में जहाँ भी कचरा दिखाई देता है वहीं उसे सड़ाकर मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बढ़ाने का विचार वहाँ अलग अलग विभागों में कार्यरत वैज्ञानिकों को कभी छ भी नहीं सकेगा। केद्ध में स्वतंत्र रूप से विचार कर काम करने की आजादी ही नहीं होती । इसलिए इन अनुसंधानों से नया कुछ हासिल होगा इसकी आशा रखना व्यर्थ है । स्वतंत्र विचार धारा पर अनुसंधान करने हेतु एक अलग संस्थान गठित करने का अब समय आ गया है | स्वतंत्र सोच के बिना विज्ञान ही नहीं । अल्बर्ट हॉवर्ड के इन विचारों को और उनके द्वारा दिए गए प्रयासों को अंततः: सफलता मिली और भारत के मध्य प्रांत में केन्द्रीय कपास समिति के सहयोग से सन्‌ 1924 में इन्स्टिट्यूट ऑफ प्लांट इंडस्ट्रिज की स्थापना हुईं । इन्दौर के महाराज ने उन्हे 120 हेक्टर भूमि 99 वर्ष के पटटे पर प्रदान की । अंग्रेज शासित भारत के मध्य वाले मध्य देश में ऐसे कृषि अनुसंधान (30) केन्द्र की आवश्यकता महसूस की जा रही थी । आईं पी आईं के खुल जाने से दो महत्वपूर्ण उद्देश्य पूरे हो गए । एक-इस केद्ध में पूसा अनुसंधान केन्द्र जैसे अलग अलग विभाग बँटे हुए नहीं थे और दो-इस केन्द्र में पूरी तरह मिट्टी की उपजाऊ शक्ति पर केन्द्रित अनुसंधान कार्य किया जाना था । द जैविक खाद बनाने के लिए कच्चे माल के रूप में वनस्पति और प्राणियों के अवशेष मिलाकर मिट्टी की अभिक्रिया अम्लीय (एसीडीक) अथवा विम्लीय (एल्कलाईन क्षारीय) न रखकर संतुलित रखना संभव हुआ । जैविक खाद बनाने के लिए जरूरी कच्चा माल ठंडी जलवायु वाले इंग्लैंड जैसे देशों में भले ही उपलब्ध न हों परंतु फसलों का भूसा, पैश, कडबी, अनुपयोगी घास चारा, सड़ी सब्जियाँ, नदी-नालों में उगे खरपतवार, समुद्री : खरपतवार व काईं, सड़े आलू, खेत का कचरा, कपास पौधे की डंडियाँ, मूँगफली के छिलके, केले के पत्ते आदि सभी कुछ भारत जैसे समशीतोष्ण जलवायु वाले देशों में भी सभी प्रकार का जैविक कचरा उपलब्ध होता है, साथ में गन्ने की पत्तियाँ और खोई भी । इस सभी सामग्री का उपयोग दूधारु पशुओं के लिए बिछावन समान इस तरह करना चाहिए कि उसमे कार्बन नत्र का अनुपात 33:1 रहे । इससे बिछावन में सूक्ष्म जीवाणुओं का प्रवेश आसानी से होता है । ये सूक्ष्म जीवाणू पहले पेड़ पौधों की छाल और शाखाओं के रेशों को खाकर गला देते हैं । इसी वजह से इन्दौर के किसान कपास के पौधे, दलहनों की संटियाँ रास्ते व सड़क पर बिछाकर रखते हैं जिससे आने जाने वाले वाहन उन्हे कूटकर उनका भूसा बना दें। (31)




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now