जागते रहो सोने वालो | JAAGTE RAHO SONE VALO

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गोरख पाण्डेय - GORAKH PANDEY

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समकालीन कहीं चीख़ उठी है अभी कहीं नाच शुरू हुआ है अभी कहीं बच्चा हुआ है अभी कहीं फ्रौजें चल पड़ी हैं अभी । (1981) 28 ग्रांखें देखकर ये आँखें हैं तुम्हारी तकलीफ़ का उमड़ता हुआ समुंदर इस दुनिया को जितनी जल्दी हो बदल देना चाहिए। क्‍ (1978) 29




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