भारत के ट्रेड युनियन आन्दोलन की समस्याएं | BHARAT KE TRADE UNION KI SAMASYAYEN

BHARAT KE TRADE UNION KI SAMASYAYEN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhशंकर गुहा नियोगी - SHANKAR GUHA NIYOGI

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शंकर गुहा नियोगी - SHANKAR GUHA NIYOGI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(14) .. ३० सालो कें बीच मजदूरों का वेतन रुपयो में बढ़ा है लेकिन असली “वेतन घटा है। मतलब यह हुआ कि आर्थिक संघर्ष और समझौते के बाद ' भी कुछ हासिल नहीं हुआ बल्कि शोषण ओर भी बढ़ा है। (ख) . आर्थिक मांगों के बारे मे ट्रेड यनियनों का दिमाग सरकार के . दिमाग हारा परिभाषित होता है। जसे कि हर बार वेतन संशोधन (वेजरिबीजन) में देखा जाता है कि वहां पुनविचार के लिये विशेष समया- _ थधि का प्राबधान दिया रहता है। सरकार के विज्ञप्ति (नोटिफिकेशन ) . के अधिकार और विभिन्न कमीशनों के सिफारिशों को मजदूरों के सामने रखकर मैंनेजमेंट मजदूरों ओर ट्रेड यूनियनों को लालायित करता रहता है। (ग) सरकाण विभिन्न श्रम कानूनों को गोल माल बनाकर इस व्यवस्था के अन्दर ही गुंजाइश कौ मरीचिका दिखाती है । : (घ) उद्योग पर क्षेत्र के आधार पर वेतनमान बनाकर सरकार एक . अस्थायी लक्ष्मण रेखा खीच देता हैं। अंग्रेजों के जमानें मे जिस तरह अंग्रेज लोग रियासतों के लिये. अलग-अलग कानून बनाकर रियासतों की जनता के मह से अंगजों का कान॑ंन लाग करो यालीौ मांग उठवानं का साम्राज्यवादी तरीका अपनाये हुए थे, आज भी उसी तरोके से सरकार अर्थनी तिवाद को बढ़ावा दे रहा है। एक उद्योग के मजदूर दूसरे उद्योग के मजदूरों के समान वेतन हासिल करने की कोशिश में सारी जिन्दगी बिता देते हैं । (डः) “कुछ छोड़ो - कुछ लो” (गिव एण्ड टेक) की नीति ही इसौ स्थिति मे जड़ पकड़ लेती है। विजय का नहीं बल्कि समझोते का पांठ पढ़ाया जाता है। जबकि हर समझौता को लागे करने की समस्या हर हमेशा बनी ही रहती है “इन्कलाब जिन्दाबाद के नारे के साथ 'वेतन्न समझौता जिन्दाबाद के नारे से आसमान गंजता रहता है, इन्कलाब कंभी नहीं आता । आज केन्द्रोय ट्रेड यनियनें अथंनीतिवाद के गड़ढे में फंस चुकी है । आथिक मंदी क यग में कर्ण का रथ जमीन में घंसता जा रहा है कर्ण जितना ही रथ हांकता है, रथ उतना ही गतिहीन रहता हैं, कर्ण अपने ही रथ में बंदी बना हुआ है ।




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