आधुनिक कहानी की रचना संस्कृति | ADHUNIK KAHANI KI RACHNA SANSKRITI

ADHUNIK KAHANI KI RACHNA SANSKRITI by इंतिज़ार हुसेन - INTIZAR HUSSAINपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 इस्मे-आ'जम कहो और ये अब कौन-सी आवाज आई? जैसे सुनी हुई हो। अरे ये तो अलिफ लैला के वरकों के बीच से आ रही है। बिलकुल शहरजाद की आवाज है। क्या कहती है? कुछ भी नहीं कहती। न कोई हिदायत न कोई पैगाम। न कोई फल्सफा न कोई नजरिया। बस कहानियाँ सुनाए चली जा रही है। एक कहानी, दूसरी कहानी, तीसरी कहानी। सिलसिला टूटने ही में नहीं आ रहा। ए वजीरजादी, ए कहानियों की मल्िका, ऐसे वक्‍त में तुम्हें कहानियों की सूझी है! जान की खैर माँगो। ये सब रात-रात का खेल है। सुबह होने पर तुम्हारी गर्दन होगी और जलल्‍्लाद की तलवार। ये सर भी उसी तरह कलम होगा जैसे पिछली जुल्म की सुब्हों में कितनी हसीनों, महजबीनों का तुमसे पहले हो चुका है। शहरयार बादशाह ने अजब ढंग पकड़ा था कि रोज शाम को एक कुँआरी को महल में लाता, रात उसके साथ बसर करता, सुब्ह होने पर उसका सर कलम करवा देता। शहरज़ाद के सर में कौन-सा फोड़ा निकला था कि खुद अपनी मर्जी से बाप से जिद करके डोली में बैठी, उस मनहूस महल में आन उतरी। आकर उसने क्या किया? कुछ भी नहीं किया। बस कहानी सुनानी शुरू कर दी। सुहागरात है और दुल्हन छपरखट पर बैठी कहानी सुना रही है। रात कहानी में बीत गई। जब सुब्ह का तारा झिलमिलाया और मुर्गे ने बाँग दी, तो शहरज़ाद बोलते-बोलते चुप हो गई। बादशाह ने बेचैन होकर पूछा, 'फिर क्या हुआ?' बोली, 'अब तो सुब्ह हो गई। कहानी दिन में थोड़ा ही कही जाती है! कोई गरीब मुसाफिर रस्ते में हुआ तो रस्ता भूल जाएगा। रात हो जाने दो। फिर बताऊँगी कि आगे क्‍या हुआ।' बादशाह ने दिल में कहा, चलो एक रात की मुहलत और सही। कहानी पूरी हो लेने दें, तो रात आई और शहरज़ाद ने कहानी जहाँ छोड़ी थी, वहाँ से सिरा पकड़ा और सुनानी शुरू कर दी। मगर कहानी के बीच फिर सुब्ह का तारा झिलमिलाया। फिर मुर्गा बोल पड़ा और कहानी फिर एक नाजुक मोड़ पर आकर थम गई। फिर वही सवाल कि फिर क्‍या हुआ और फिर वही जवाब कि अब तो मुर्गे ने बाँग दे दी, सुब्ह हो गई। बाकी बशर्ते-हयात रात को। इसी में रातें गुजरती चली गईं और कहानी से कहानी निकलती चली गई। हजार बार सुब्ह हुई और हजार बार मुर्गे ने बाँग दी। एक हजार एकवीं रात में कहीं जाकर कहानी खत्म हुई | मगर इस अर्से में बादशाह का कायाकल्प हो चुका था। कहने वाले का भला, सुनने वाले का भला। शहरज़ाद की जान बची लाखों पाए। बादशाह ने औरतों के कत्ल से तौबा की और चैन पाया। तो ये थी अलिफ लैला की पैदाइश की वजह। मैंने शहरज़ाद के भेद को पा लिया। कहानी रात को इसीलिए सुनाई जाती है कि वक्‍त कटे और रात टले। मैं भी एक लंबी काली रात के बीच साँस ले रहा हूँ। इस रात का रिश्ता शहरज़ाद की रातों से मिलता है। तो गोया इस रात का भी तोड़ यही है कि कहानी कही जाए। जब तक रात चले, कहानी चले और इसी तौर पर जो शहरज़ाद ने इख्तियार किया था या'नी देखा कि इर्दगिर्द की फजा में खून की बू बसी हुई है। इनसानी जानों की कोई कीमत नहीं रही। कत्ल हैं, दहशत और खौफ का समाँ है। तब उसने इर्द-गिर्द से जेहनी बेता'ल्लुकी का रवैया अपनाया और कहानियों की ऐसी दुन्या में निकल गई जिसकी फजा हाजिर व मौजूद से यक्सर मुख्तल्रिफ थी। मैंने सोचा, चलो हम भी इसी राह पर चलते हैं और उस दुनिया में निकल जाते हैं। जहाँ बस रात थी और कहानी थी। दास्तानें, कथाएँ, कहानियाँ| गुल ने सनोबर के साथ क्या किया? हुस्नबानो ने हातिम से क्या-क्या सवाल किए और हातिम क्या-क्या जवाब लाया? देव के किले में कैद शहजादी शहजादे को देखकर क्‍यों रोई और क्‍यों हँसी? कुलैला ने दमना को क्या नसीहत की और दमना ने उसका क्या जवाब दिया? जितने सवाल उतनी कहानियाँ, हर कहानी जोखिम भरे सफर की विपदा। झाँककर बाहर देखा। अच्छा, फितने की रात तो और लंबी खिंच गई! तो फिर कहानी शुरू हो गई। शहजादा वनों की खाक छानता, नगर-नगर घूमता, 47




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