एक समुद्री कछुए की कथा | EK SAMUDRI KACHHUE KI KATHA
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
176 KB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उलट-पलट कर, और इस्तेमाल करके बहुत आनन्द लिया है। अब, इसके लिये आप तालियां बजा रहे हैं। सबको इस बात
का एहसास है कि आपकी तालियां मेरे लिये नहीं है, या फिर गौडी के लिये भी नहीं हैं। यह लोगों की सक्रियता और काम
की प्रष्ठांसा है।”
गौडी के लिये आगे एक और आष्ठचर्य था। जब उसे टंकी में नीचे उतारा जाने लगा, उसने पाया कि मैनेजर के आदेष्ठा
के विपरीत वह पानी से भरी हुई थी। अगर आप सोच रहे हैं कि गौडी कितना खुष्ठा हुआ होगा, जरा कल्पना करें कि पुलु
ने केसा महसूस किया होगा। गौडी ने वह पानी थूक दिया जो वह मुंह में भरे बचा रहा था।
“यह कैसा रहा, पुलु! अब तुम महान सागर की ओर मेरे साथ जाओगे ही, इसमें अब कोई संष्ठाय नहीं बचा हे।
मैं अपने पूरे जीवन में इससे ज्यादा खुष्ठा नहीं हुआ हूँ।”
मारे उत्तेजना के पुलु के मुंह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, पर उसने पीठ का पंख उल्लास में कम से कम
तीस बार लहराया।
ज्यादा समय भी न लगा, जब इन दो दोस्तों को ले जाने वाली टंकी समुद्र के किनारे पहुंच गई। ऊपर आकाष्टा बहुत
स्वच्छ नीला था, और सागर के ऊपर ग्रीज््मकालीन बादलों के विष्ठालकाय स्तंभ धीरे-धीरे तैर रहे थे। श्लीतल, नमकीन समुद्री
बयार ने गौडी की स्मृति को छेड़ा और उसका हृदय पुरानी यादों व संतोज्ञ से प्रफुल्ल हो गया।
यहाँ समुद्र तट पर लोगों की एक और भीड़ थी। वे सब उस विष्ठाल कछुए का इंतजार कर रहे थे जिसे आजाद
किया जाना था, और आखिरी रस्म अदायगी चालू होने को थी। इस अवसर के लिये एक तम्बू गाड़ा गया था और कंध
पर पट्टियों द्वारा बड़े बड़े साइन बोर्ड लगाए लोग बिखरे हुए थे।
“प्रकृति संरक्षण संघ - प्रकृति व ईष्ठबर के जीवित प्राणियों के विनाष्ठा विरोधी समिति।'
भीड़ में और भी साइन बोर्ड थे, लेकिन गौडी नहीं देख पाया कि उन पर क्या लिखा था। अब फिर भाज़णों का
समय था, और उन विष्ठलोज़ चीख चिललाहट और भंगिमाओं का, जो केवल इंसान ही पसन्द करते हैं। हालांकि इस बार की
वक्ता एक मध्यम वय की दयालु महिला थी। “इस विष्ठाल समुद्री कछुए गौडी के लिए अपने प्यार को व्यक्त करने के लिये
हम यहां आज एकत्र हुए हैं। हमारे प्टाहर के लोगों की इतनी लम्बी सेवा करने के लिये तुम्हारा बहुत धन्यवाद, गौडी। हम
तुम्हारे आकर्ज़ण के बारे में क्या कह सकते हैं, जिससे तुमने पिछले चालीस वर्ज़ों में अनगिनत बच्चों को बेहद खुष्टी प्रदान
की है? ओह, क्या सिर्फ इस ख्याल से ही तुम्हारा हृदय इस जीव के प्रति प्रेम से नहीं भर उठताख़, ”
वह बेचारी महिला सचमुच ही भाव विभोर हो उठी और उसकी आवाज आसुओं में फंसकर खत्म होती गई। कई
हाथों ने उसे सहारा देकर मंच से नीचे उतारा।
टंकी को सावधानी से धकेलते हुए पानी के किनारे पहुंचाया गया। 'अब कक््या?' गौडी ने सोचा, जैसे ही एक प्यारी
सी दिखने वाली, गोल गोल चष्ठमें पहने, एक बूढ़ी औरत उसके पास आई। उसके एक हाथ में एक चमचा था ओर दूसरे
में बोतल। उसने चमचे से बड़े कछुए का मुंह खोल दिया और-अरे यह क्या? और फिर, अरे दैया! अपने हाथ की बोतल
से उसने गौडी के मुंह में चावल की छ्लाराब उड़ेल दी।
जाहिर है कि गौडी ने अपनी जिन्दगी में ऐसा कुछ, कभी चखा न था। लोग, गौडी की परेष्ठानी की ओर ध्यान दिये
बगैर, इस चीज को पीने लगे, गिलास पर गिलास, बार बार बोलते हुए-“गजब, बहुत बढ़िया!” और इसी तरह के दूसरे छ्टाब्द
भी। गौडी, जिसका सिर छ्टाराब से इस अप्रत्याष्ठित परिचय के बाद घूम रहा था, समझ नहीं पाया कि वे 'गजब!' किस चीज
के लिये कह रहे थे। वह तो बस पूरी पूरी कोष्ठछिष्ठा में लगा था कि पुलु सावधानी से उसके पैर के नीचे छुपा रहे।
आखिरकार गौडी को टंकी के ऊपर उठाकर पानी में रख दिया गया। जैसे ही एक लहर उसकी पीठ के ऊपर बह
कर आई, वह समुद्र की ओर आनन्द से तैर कर बढ़ गया।
ऊपर खूबसूरत नीले आकाष्टठा में, गर्मी का देदीप्यमान सूरज, इतनी प्टाक्ति से चमक रहा था जितना गौडी ने कभी
न देखा था। बादलों की वे फूली-फूली मीनारें धीरे-धीरे बड़ी होती गई और उस अन्तहीन सागर के ऊपर तैरती चली गई;
महासागर में दूर तक।
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