मार्क्स और आज का समय | MARX AUR AAJ KA SAMAAJ

MARX AUR AAJ KA SAMAAJ by एरिक होब्सबाम - ERIC HOBSBAWMपुस्तक समूह - Pustak Samuhरामकीर्ति शुक्ल - RAMKIRTI SHUKLA

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रामकीर्ति शुक्ल - RAMKIRTI SHUKLA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/2/2016 जिसे मैंने महाविपत्ति का युग कहा है उसमें पर्यवसान जो 1914 और 1940 के बीच के वर्षों में घटित हुआ। संकट इतना जोरदार था कि तमाम लोग यह संदेह करने लगे कि क्या पूँजीवाद इससे कभी भी उभर पाएगा। क्‍या यह समाजवादी अर्थव्यवस्था के सामने पराजित हो जाएगा जैसा कि मार्क्सवाद से बहुत दूर रहनेवाले जोसेफ शुम्पीटर 1940 मैं सोच रहे थे? पूँजीवाद फिर उठ खड़ा हुआ लेकिन अपने पुराने रूप को बचा नहीं पाया। इसी समय विकल्प के रूप में सामने आई समाजवादी अर्थव्यवस्था उस समय अभेद्य लग रही थी। 1929 और 1940 के बीच समाजवादी राजनीति को अस्वीकार करनेवाले गैर-समाजवादी लोगों के लिए भी यह विश्वास करना असंगत नहीं लग रहा था कि पूँजीवाद अपनी अंतिम साँसें गिन रहा है और सोवियत संघ यह सिद्ध करने में लगा था कि वह पूँजीवाद को इतिहास मैं ढकेलने मैं सफल हो जाएगा। स्पुतनिक उपग्रह के वर्ष में इस विश्वास में काफी दम लग रहा था। लेकिन 1960 के बाद इस विश्वास का खोखलापन धीरे-धीरे लोगों के सामने जाहिर होने लगा। ये घटनाएँ और नीति तथा सिद्धांत के क्षेत्र में इनका प्रभाव मार्क्स और एंगिल्स की मृत्यु के बाद की कथा का अंश है। मार्क्स के अपने अनुभवों और आकलनों की सीमा से ये बाहर हैं। बीसवीं सदी के मार्क्सवाद का हमारा आकलन स्वंय मार्क्स के चिंतन पर आधारित न हो कर उनके लेखन के उनके मृत्यु-उपरांत की गई व्याख्याओं और संशोधनों पर आधारित है। अधिक से अधिक हम यह दावा कर सकते हैं कि 1890 के अंतिम वर्षों में, अर्थात मार्क्सवाद के पहले बौद्धिक संकट के दौरान, मार्क्सवादियों की पहली पीढ़ी के वे लोग जो मार्क्स और उनसे भी अधिक एंगिल्स के व्यक्तिगत सम्पर्क में आए थे, संशोधनवाद, साम्राज्यवाद और राष्ट्रवाद जैसे बीसवीं शताब्दी में सामने आनेवाले मुद्दों पर बहस प्रारंभ कर चुके थे। मार्क्सवाद से संबंधित बहस का अधिकांश भाग बीसवीं सदी से जुड़ा हुआ है, खासकर समाजवादी अर्थव्यवस्था के भावी स्वरूप को ले कर चलनेवाली बहस जो मुख्य रूप से पहले विश्व युद्ध की अर्थव्यवस्था और युद्वोत्तर वर्षों की अर्ध-क्रांतिकारी अथवा क्रांतिकारी संकटों की उपज थी। इस बहस के रेशे मार्क्स में मौजूद नहीं हैं। इस तरह मार्क्स यह दावा करने की स्थिति में शायद ही थे कि उत्पादन के साधनों के त्वरित विकास के लिए पूँजीवाद की तुलना में समाजवाद श्रेष्ठ है। यह दावा उस दौर का है जब दोनों विश्व युद्धों के बीच के वर्षों में पूँजीवाद का मुकाबला सोवियत संघ की पंचवर्षीय योजनाओं से हुआ। वास्तव में मार्क्सवाद का दावा यह नहीं था कि उत्पादन के साधनों की पूरी क्षमता को विकसित करने में पूँजीवाद अपनी अंतिम सीमा तक पहुँच गया है। उसका मानना यह था कि पूँजीवादी विकास की अनवरुद्ध लय समय-समय पर अतिउत्पादन का संकट पैदा करती रहती है जो देर-सबेर अर्थव्यवस्था के संचालन से मेल नहीं खाता और यह अतिउत्पादन ऐसे सामाजिक संघर्षों को जन्म देता है जिनसे यह उबर नहीं सकता। अपने स्वभाव के चलते ही पूँजीवाद सामाजिक उत्पादन के बाद की अर्थव्यवस्था को अनुशासित कर सकने में अक्षम होता है। उसका मानना था कि ऐसा करने की क्षमता केवल समाजवाद में है। इसीलिए इससे अचंभित नहीं होना चाहिए कि कार्ल मार्क्स पर होनेवाली बहसों में और उनके सिद्धांतों के आकलन के केन्द्र में 'समाजवाद रहता आया है। इसका कारण यह नहीं था कि समाजवादी अर्थव्यवस्था की प्रायोजना केवल मार्क्सवादी है - ऐसा नहीं है - अपितु मार्क्सवाद से प्रभावित प्रेरित दल इस प्रायोजना में विश्वास रखते थे और अपने को कम्युनिस्ट कहनेवाले दलों ने इसे व्यवहारतः सिद्ध भी कर दिया। अपने बीसवीं सदी के रूप में यह प्रायोजना मृत हो चुकी है। सोवियत संघ और अन्य केन्द्र-नियोजित अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रयुक्त समाजवाद 4/10




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