एस० एम० जोशी - जीवनी की झलक | S. M. JOSHI - JEEVNI KI JHALAK
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
14
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चंद्रकांत पाटगांवकर - CHANDRKANT PATGAONVKAR
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
श्रद्धेय एस. एम. जोशी यह एक असाधारण समाजवादी नेतृत्व था । उनके कार्यक्रम
में वे स्वयं मानो महाराष्ट्र के चारित््य को मापदंड थे | कोई मानते थे कि उनके नाम का अर्थ
संयुक्त महाराष्ट्र था। कोई मानते थे उसका अर्थ समता और ममता था । लेकिन सभी
मानते थे कि वे समाजवादी महामानव थे । उनका पूरा जीवन समाज के हित के लिए
समर्पित था । उन्होंने समाजवादी आंदोल॑न की संस्थापना करने में जयप्रकाशजी को समर्थन
दिया । वे राष्ट्र सेवा दल जैसे महान समाजवादी संघटना के संस्थापक थे । उनकी वजह से
ही संरक्षण कामगारों का अखिल भारतीय फेडरेशन बन सका । उनके बिना संयुक्त महाराष्ट्र
असंभव था । उनकी प्रेरणा से ही मराठवाडा विद्यापीठ नामांतर करके डॉ. बाबासाहेब
आंबेडकर मराठवाडा विद्यापीठ हो गया । उन्होंने जिन हजारों युवकोंको समाजवादी दिक्षा
दी वे आज भी कार्यरत हैं । महाराष्ट्र राज्यको पुरोगामी दिशामें रखनेका काम उन्होंने बहुत
कारगरतासे पूरा किया । ऐसे महानुभाव का चरित्र मेरे मित्र प्रो. चंद्रकांत पाटगावकर ने
प्रसिद्ध किया इसका मुझे हर्ष है |
प्रो. चंद्रकांत पाटगावकर एक मायमनेमें अद्वितीय व्यक्तित्व है । महात्मा फुले, शाहू
महाराज, डॉ. आंबेडकर, साने गुरुजी और जयप्रकाशजी की जीवनी पर हजारो व्याख्यान
उन्होंने दिये और करीब 4 लाख छात्रोंतक समता का संदेश पहुँचाया । मुझे नहीं लगता कि
यह असाधारण काम और किसीने इसी तरह किया होगा । इसलिए मैं इस व्यक्तित्वको
अद्वितीय मानता हूँ । श्रद्धेय एस. एम. जोशीजीके जन्मशती काल में सौ व्याख्यान देने का
निश्चय उन्होंने किया है और वे पूरा करेंगे इसके बारे में नि:संदेह हूँ । स्वतंत्रता सेनानी के
नाते उन्हें जो निर्वाह वेतन मिलता है उस में वे यातायात खर्च निभा लेते हैं | किसी भी
शिक्षा संस्थाके एक छदाम की अपेक्षा वे नहीं रखते । प्रो. चंद्रकांत पाटगावकर राष्ट्र सेवा
दल के निस्सिम पाईक है । इस उमर में भी उनका राष्ट्र सेवा दल का कार्य जारी है ।
“चले जाव' आंदोलन में इमाम अली बने श्रद्धेय एम. एम. जोशी दो जेबो में पिस्तुल
रखकर देशभ्रमण करते थे । लेकिन 1948 के बाद समाजवादी आंदोलन में साध्य साधन
विवेक का निर्णय लिया । संयुक्त महाराष्ट्र के सवालपर जब काँग्रेसीयोंने 4हरजी के दल
के कारण परिषद समाप्त की तब श्रद्धेय एस. एम. जोशीजीने आदरणीय कवर ज।
की सदारत में संयुक्त महाराष्ट्र समिती गठित की | उसके पक) वश पैथी लोग हिट!
मारषिर तूले हुए थे । लकिल श्रद्ेथ जी शी जी ने ।नकी गत बहता कटीत का
दिया । पज्य वोशी ती की जैतृत्ल ६71] अधीहारस भ। ज, 3 ।।
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का मार्ग अपनाने की हिंमत नहीं हुई । श्रद्धेय जोशी जी की वजहसेही मराठी गुजराथी द्रेष
भावना उस आंदोलनसे नष्ट हो गयी । इतनाही नहीं श्रीमती अनुताई लिमये जी के नेतृत्व
में उन्होंने महाराष्ट्र गुजराथ के सत्याग्रहियोंकी एक टुकडी भेजी थी । मेरी दृष्टि से श्रद्धेय
जोशीजी # सबसे बडा वैशिष्ट्य यह था कि जितनी परिस्थिती प्रतिकूल उतनाही उस
परिस्थिती का मुकाबला करने का निर्ध दुर्दम्य बना देते थे । प्रतिकूल परिस्थिती के
सामने उन्होंने कभी भी शरण नहीं दी । पूरे जीवन में जमातवाद के विरोध में वे निरंतर झगडते
रहे । लेकिन श्रद्धेय जोशी जी आज होते तो वैश्विकीकरण के विरोध में बुढ़ापे मे लडने का
जोश देखकर समाज प्रेरणा ले लेता ।
आशा है कि प्रो. पाटगावकरजी की यह किताब हजारों युवकों के हाथ में जाये और
उससे बे प्रेरणा लें ।
प्रो - पाटगांवकरजी को इस वर्ष का 'बें. नाथ पै समाजसेवक पुरस्कार प्रो. मधु
दडवतेजी क॑ शुभ करकमलो के द्वारा प्रदान किया गया । इस पुरस्कार के जो दस हजार
डक उन्हें मिले उनका विनियोग एस. एम जोशीजी की जीवनी प्रकाशित करे में उन्होंने
या!
छात्र तथा युवकोंके लिए केवल पाँच रुपये मूल्य रखकर हो हजार पुस्तिकाओं की
विक्रीसे मिलनेवाले कुल दस हजार रुपये एस. एम. जोशी शताब्दि समिती को प्रदान किये
इसलिए मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ ।
पुणे ; 21-9 2003 भाई वेद्य
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