आम जिन्दगी की मजेदार कहानियाँ | AAM ZINDAGI KI MAZEDAAR KAHANIYAN

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होल्गेर पुक्क - HOLGER PUCK

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मीकू अक्टूबर के (रूसी क्रान्ति के बाद के-अनु.) बच्चों की सभा में हिस्सा लेकर लौटा था। प्रवेश हाल में अपना कोट उतारते हुए वह जोर से चिल्लाकर बोला ताकि सभी सुन लें, आज हम लोगों ने तरह-तरह का खेल खेला।” किस तरह के खेल?” पिताजी जानने को उत्सुक थे। “शतरंज, और लम्बी छलाग और...” मीकू पटर-पटर बोले जा रहा था। जाहिर था सबसे बड़ी खबर अभी आनी बाकी थी। “कैसा रहा,” पिताजी ने पूछा। कुछ हार गये लेकिन मैं एक भी खेल में नहीं हारा,” मीकू का चेहरा खुशी से दमक रहा था। “तुम बहुत होशियार निकले,” पिताजी बोले। चालाक मीकू 17




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