सांझ | SAANJH
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
313 KB
कुल पष्ठ :
32
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जगदीश गुप्त - Jagdish Gupta
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पुस्तक समूह - Pustak Samuh
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तुम कीन स्वप्न में आये,
भर गये दूगों में हिमकन | |110 | |
उस क्षण तुमको पाते ही,
जल होकर बहा समर्पण |
कितने दिन इन प्राणों में,
अकुलाता रहा समर्पण | |111 | |
सौ बार समय-सागर में,
लय होंगे साँझ-सवेरे |
तुम गिन न सकोगे फिर भी,
धड़कने हृदय की मेरे | [112 | |
सिर पर भौरो सी काली,
दुख की छाया गहरी थी |
सुमनावलियाँ रोती थीं,
आँखों में ओस भरी थी। |113 | |
झुलसी थीं उत्पीड़न से,
पंखुरियाँ आतप-मारी |
जलकण बन ढलक गई थीं,
सौरभ की सिसकन सारी | [114 | |
आँसू-शबनम के कन में,
ढालते अपरिमित मद को |
तुम कौन किरन से आये,
रंग गये उदार जलद को | |115 | |
मच गया विकल-कोलाहल,
रजनी के अन्तः्पुर में |
किरनों की कोमल लपटें,
जब उठीं तिमिर के उर में | [116 | |
ज्यों ही ऊषा तिर उतरी,
धुँधली सी क्षितिज पटी पर |
नवनीत-शवेत सुमनों की,
मधु-वृष्टि हुई अवनी पर | |17 | |
आँसू-श्रमकण से बोझिल,
पलकों के पंख पसारे |
उड़ गये नयन-नीड़ो से,
सपनों के विहग बिचारे | |118 | |
प्रहिणिल 57 / है लग ला 6 .1-16
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