मेरे गुरुदेव | MERE GURUDEV

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स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हब मेरे भुवदेव कि यह कट्टरता ही सत्य है। सम्भव है हम सब उनसे इस सम्क्ध में सहमत म हों, परन्तु उनका विश्वास है कि वह ठीक है । हमारे श्रल्यों में लिखा है कि मनुष्य को देव अति उच्च दर्जे का दानशील होना चाहिए । यदि कोई मनुष्य दूसरे आदमी की सहायता करने के लिए तथा उस आदमी की जान बचाने के लिए स्वयं भूखों ही मर जाय तो भी ठोक है और मनुष्य का कतेंव्य भी यही है। एक ब्राह्मण से यह आशा की जाती है कि वह इस ध्येय का पालन अत्यन्त कड़ी रीति से करेगा । जो भारतवर्ष के साहित्य से सुपरिचित हैं, उन्हें इस अपूर्ब दान के सम्बन्ध में एक सुन्दर पुरानी कथा याद आ जायगी। महाभारत में दर्शाया है कि एक कुटुम्य का कुटुम्ब एक भिखारी को अपना अस्तिम भोजन देकर भूखों मर गया। यह अतिशयोक्ति नहीं है, क्‍योंकि ऐसी बातें अब भी होती रहती हैं। मेरे गुरुदेव के माता-पिता का स्वभाव बहुत-कुछ हसी प्रकार का था। यद्यपि वे बहुत गरीब थे परन्तु फिर भी मेरे मुददेव की भाता अक्सर किसी गरीब आदमी की सहायता करने के लिए स्वयं दिनभर भूखी रह जातो थीं । उन्हीं माता-पिता के घर में इस बालक ने जन्म लिया और बचपन में ही यह बालक कुछ विलक्षण-सा था। अपने पूर्वजन्म का संस्मरण उसे जन्म से ही था त्णा वह इस बात को भलीभाँति जानता था कि इस संसार में उसने किस उद्देश्य से जन्‍म लिया है और इस उद्देश्य की पूर्लि के लिए ही उसने अपनी सर्व शक्ति लगा दी । जय वह बालक बिलकुल छोटा था, तभी उसके पिता का देहान्त हो गया और वह लडका फिर पाठशाला भेजा मंया | ब्राह्मण के लड़के को पाठशासा अवश्य जाना चाहिए, क्योंकि खकातिकानव के अनुसार उसको केवल पढ़ने-लिखने का ही




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