धूर्त साधु और किसान | DHOORT SADHU AUR KISAN
श्रेणी : बाल पुस्तकें / Children
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
111 KB
कुल पष्ठ :
4
श्रेणी :
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दिविक रमेश - DIVIK RAMESH
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)80/10/2016
व्यापारी ने जल्दी से दोहराया -
'सुनो-सुनो ओ भोले किसान,
करो नहीं अब तुम आराम
ये साधु हैं धूर्त बड़े
अब तुम करो एक ही काम
इतना मारो इनको जमकर
निकल जाएँ सब खाए आम।'
यह बार सुनकर दोनों समझ गए कि बुद्धिमान व्यापारी ने उनको अपने ही जाल में फँसा लिया है और उन दोनों ने
किसान के पाँव पकड़ लिए और गिड़गिड़ाकर कहा, 'हमें माफ कर दो। हमें अपने किए का फल मित्र गया है। अब
हम कभी इन पेड़ों की ओर मुँह तक नहीं करेंगे।'
उनको गिड़गिड़ाते देखकर भोलरू किसान का मन पसीज गया। वह दयालु तो था ही। उसने उन्हें उठाकर कहा, 'तुम
लोगों ने मुझ भोले-भाले आदमी को भी समझदार बना दिया है। मैं अपने भोलेपन की वजह से ही तुम्हारी बातों में
आ गया था। जाओ, अब किसी के भोलेपन का नाजायज फायदा मत उठाना।'
बुद्धिमान व्यापारी ने भी उनसे कहा, 'तुम लोगों ने साधुओं का वेश धारण करके यह नीच काम किया है। तुमने
साधुओं पर भी कलंक लगा दिया है। तुम्हें प्रायश्चित करना चाहिए।
दोनों साधुओं ने हाथ जोड़कर पूछा - 'बताइए, हमें क्या करना होगा? अपने माथे से यह कलंक मिटाने के लिए हम
हर तरह का काम करने को तैयार हैं।'
'तो सुनो!' अब तुम कुछ दिन भोलू किसान के खेत में मेहनत करके इसके आमों की कीमत चुकाओ।' व्यापारी ने
कहा।
साधुओं ने व्यापारी की बात मान ली। उन्होंने किसान के खेत में खूब मेहनत की। जब किसान की हरी-भरी फसल
लहलहा उठी तो वे दोनों बहुत ही खुश हुए। मेहनत का फल इतना मीठा होता है, उन्होंने कभी जाना ही नहीं था।
अब तो वे भोल्रू किसान के अच्छे दोस्त बन गए थे।
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