हिरनी | HIRNI

HIRNI by चन्द्रकिरण सोनरेक्सा - CHANDRA KIRAN SONREKSHAपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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चन्द्रकिरण सोनरेक्सा - CHANDRA KIRAN SONREKSHA

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की तरफ़ दोनों हाथ उठा कर बोली- “अल्लाह का कहर पड़े. तेरे ऊपर....! खुदा करे, तेरे भाई की मैयत निकले ! ....तूने हमारे खानदान की नाक काट ली। मेरे शफ़ीक के लिए तू ही धरी थी। हाय अल्लाह, कैसी जुबानदराज़ है। जी चाहता है जुबान खींच लूँ इसकी ......' .... और फफी तब नाक के स्वर में रो रो कर अल्लाह को पुकारने लगी। मैं भाभी का हाथ पकड़ कर उन्हें खींचती हुई नीचे ले आई | तिरस्कार से मैंने कहा - “यही है तुम्हारी सहेली !” भाभी ने चिढ़ कर कहा- “सहेली का क्‍या कसूर बीबीजी? तुम्हें ही अगर कोई जेलखाने में बन्द करके बाप-भाइयों को गालियाँ दे, तो कहाँ तक सुनोगी ? वह तो रोहतक के किसी ठेठ गाँव की लड़की है। शहरों की - मुँह में राम बगल में छुरी वाली सभ्यता तो जानती नहीं ! उसे तुम “तू” कहोगी, तो “तू” सुनोगी भी ! वैसे दिल की इतनी अच्छी है कि ज़रा सा किसी का दुख नहीं देख सकती | ग़रुर मिजाज तो वह जानती तक नहीं |” - और भाभी कुछ अप्रसन्‍्न सी हो कर बाहर चली गई | जुबानदराज - ज़्यादा जुबान चलाने वाली हिरनी/ चन्द्रकिरण सौनरेक्सा 13




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