सेवा ग्राम के दर्शन | SEVAGRAM KE DARSHAN

SEVAGRAM KE DARSHAN by पुस्तक समूह - Pustak Samuhयशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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'श्री यशपाल जी 'विष्लवी ट्रेक्ट' के मई अंक में आपकी सेवाग्राम की मुलाकात को लेकर लिखा हुआ लेख पढ़ा। आपने एक दो बातें गलत जानकारी (#ण॥५४०7)) पर लिखी हैं और उससे कुछ गलतफहमी पैदा होना संभव है। 'यह बात सही नहीं कि गांधी जी का सेक्रेटेरियट वर्धा में है। श्री महादेव भाई वर्धा में नहीं लेकिन सेवाग्राम ही में रहते हैं। मैं,न कोई गांधी आश्रम का मंत्री हूँ और न गांधी जी के 'स्टाफ' का मेंबर हूँ। वास्तव में मैं किसी भी प्रकार का पदाधिकारी नहीं हूँ। सिवाय गांधी सेवा संघ की कार्यवाहक समिति का एक सदस्य हूँ और कर्मचारी। महादेव भाई की अनुपस्थिति में कभी-कभी गांधी जी को उनके पत्र-व्यवहार आदि में मदद करने के लिए सेवाग्राम चला जाता हूँ - यह आजकल की परिस्थिति में एक फालतू (०८४०) सा काम है। 'सरकार बहादुर ने टेलीफोन लगवा देने में गांधी जी पर कोई मेहरबानी नहीं की है। सिर्फ अपने ग्राहकों की संख्या बढ़ती की है। टेलीफोन के कारण चर्खा संघ, ग्रामोद्योग संघ आदि संस्थाओं के दफ्तर वर्धा में हैं,ऐसा कहना भी गत्नत होगा। टेलीफोन तो दो-ढाई साल से आया है। ये दफ्तर तो वर्षों से यहीं हैं, खैर। 'श्री शाह के स्वास्थ्य के विषय में आपको जानकारी न होने के कारण आपने उनके बाह्याचार से गलत धारणा कर ली मालूम होती है। वे कुछ काल से रीढ़ (६४71०) की कमजोरी और दमे के कारण इतने बीमार रहते हैं कि उन्हें अपना काम अधिक समय लेटे रहने की स्थिति में ही करना पड़ता है। मैनेजर से आप विवेचन की अपेक्षा नहीं कर सकते। वे पुराने सेवक हैं, बहीखाता (४००००1४॥7००) आदि के जानकार हैं। बहुत ही ईमानदार (1०1०४) और विश्वासपात्र (10५91) हैं, सच्चरित्र हैं। अपने साथियों से मिठास से व्यवहार कर सकते हैं इसलिए स्वास्थ्य खराब होते हुए भी उन पर यह जिम्मेदारी डाली गई है। 'हाँ, उन्होंने आपका आतिथ्य वही किया जिस प्रकार दर्शकों (०5४) का यहाँ होता है। उसे देखते ऐसी भूल होना अस्वाभाविक नहीं है। फिर भी आपको तकलीफ हुई इसलिए क्षमा करिएगा। यह अनादर के कारण नहीं असावधानी से हुई मानिए। आपकी विनोद वृत्ति से प्रसन्‍न हुआ। आपका कि.घ. मशरूवाला'




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