मेघनाथ साहा का जीवन और कार्य | MEGHNAD SAHA LIFE AND WORK

MEGHNAD SAHA LIFE AND WORK by कमलेश राय - KAMLESH RAIपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शीघ्र वापसी डॉ ०साहा सन्‌ 192। में जमंनो से शीघ्र वापस आ गए क्योंकि सर श्राशुतोष मुकर्जी ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर का पद देने का तार उनके पास भेजा । पंजाब में खरा राज्य के गुरुप्रसाद सिंह ने विश्वविद्यालय को कुछ रुपया दान में दिया था। इस दान से एक प्रोफंसर का पद स्थापित किया गया था। सर आशुतोष ने भौतिकी पढ़ाने के लिए खेरा प्रोफेसरी स्वीकार करने और कलकत्ता विश्वविद्यालय में अनुसंधान की व्यवस्था करने की प्रार्थना डा० साहा से की । सर आशुतोष शिक्षा के उत्कट सुधारक थे। वह विश्वविद्यालय को मजबत और अनुसंधान का उच्च स्तर का केंद्र बनाना चाहते थे, यद्यपि भारत की अंग्रेजी सरकार उन्हें इस प्रयत्न में प्रोत्साहन नहीं देती थी। प्रोफेसर के पद के लिए घन खरा राज्य से मिला और मेघनाद साहा इस पद पर नियुक्त हो गए । परंतु उपकरण और पुस्तक खरीदने और अनुसंधान-सहायक नियुक्त करने के लिए अ्रधिक धन की आवश्यकता थी । सर झाशुतोष ने बंगाल सरकार से सहायता माँगी, पर उन्हें कोई सहायता नहीं मिली । घन का प्रभाव प्रोफेसर साहा के अनुसंधान की प्रगति में भारी बाधा सिद्ध व हुआ । वे केवल यही चाहते थे कि ऐसा विश्वविद्यालय हो जहाँ वे शोध कार्य कर सकें। अलीगढ़ और बनारस विश्वविद्यालय साहा को श्रपने यहाँ बुलाने को उत्सुक थे। डा० शांति स्वरूप भटनागर उस समय बनारस विश्वविद्यालय में रसायन के प्रोफेसर थे और चाहते थे कि उनके मित्र डा० साहा उसी विश्वविद्यालय में श्रा जाएं। परंतु उन दोनों विश्वविद्यालयों के भौतिकी विभाग में अनुसंधान की सुविधा को उतनी ही कमी थी जितनी कलकत्ता में और डा० साहा को ये निमंत्रण भ्रस्वीकार करने पड़े । एक और निमंत्रण सर गिलबर्ट वाकर ने भेजा जो उन दिनों भारतीय मौसम- विज्ञान विभाग के निदेशक थे। सर गिलबर्ट ने कोडाईकनाल वेधशाला में सूर्य के स्पेक्ट्म पर अपना कार्य करने के लिए पूरी सुविधाएँ डा० साहा को देने का वचन दिया । यह एक सरकारी पद था और अच्छा वेतन भी था। परंत्‌ प्रोफेसर साहा सच्चे वैज्ञानिक की भाँति सरकारी पद के लिए विज्ञान के विस्तृत मार्ग को छोड़ना नहीं चाहते थे चाहे वह पद कितना ही झंकर्षक क्‍यों न हो और न वे अपने अ्रभुसंधान को सौर भौतिकी तक सीमित रखना चाहते थे ।




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