मुझे धुप चाहिए | MUJHE DHOOP CHAHIYE

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गिरिजा कुलश्रेष्ठ - GIRIJA KULSHRESHTH

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“कुट्टू आखिर कहाँ चला गया?” कालू और साँवरी हैरान थे और परेशान भी। सुबह जब दोनों दाना-दुनका और कीड़े-मकोड़े लेने गए थे तब घोंसले में चारों बच्चे मौजूद थे। लौटने पर उन्हें केवल तीन बच्चे मिले। काफी उदास और सहमे हुए। उन्हें देखते ही तीनों चिल्ला उठे, “माँ... माँ... कुट्दू पता नहीं कहाँ गया है।” “हम तो सोने की कोशिश कर रहे थे चुपचाप। “और हमें छोड़कर जाने कहाँ चला गया।” तीनों बच्चों की बातें सुनते हुए वे दोनों कितनी ही बातें सोच रहे थे। कालू-सांवरी का घोंसला नीम की सबसे ऊँची टहनियों के झुरमुट में बना था जो आसानी से दिखाई तक नहीं देता था | बिल्ले और दूसरे दुश्मनों के वहाँ पहुँचने की तो सोचना बेकार है। वहाँ पहुँचना तो बाज़ जैसे चुस्त 28 वुझे दरए चाहिह और चालाक शिकारी के लिए भी उतना आसान नहीं है। इसलिए यह सोचना तो बेवकूफी होगी कि घोंसले में से कोई कुट्टू को ले गया होगा। और, कोई ले भी जाता तो बाकी तीन को क्‍यों छोड़ता? तो फिर कुट्टू कहाँ और कैसे चला गया? हालाँकि कालू और साँवरी जानते थे कि बड़े होने पर बच्चों को एक दिन घोंसला छोड़कर आज़ादी से उड़ना ही है, पर अभी इसके लिए कुछ और समय की ज़रूरत थी। अभी तो उनके पंख छोटे और कमज़ोर थे। इनसे घोंसले में ही फड़फड़ाने का शौक तो पूरा किया जा सकता था, पर अभी यों स्वतंत्र रूप से अकेले ही उड़ जाने की बात सोचना उनके लिए कुछ मुश्किल था। इसलिए कुट्ढू का यों गायब हो जाना उनके लिए अफसोस के साथ हैरानी की बात भी थी। कालू इन्हीं विचारों में डूबा था कि बिल्लू बिलला वहाँ से गुज़रा। बिल्लू खासा मोटा-ताज़ा और बड़ा घाघ बिल्ला था। अण्डों और नन्हे बच्चों पर उसकी नीयत हमेशा बुरी रहती थी। कुट्टू के बारे में वह कई चिड़ियों से बातें करते देखा गया था। “अगर कुट्टू उड़ने की कोशिश में नीचे गिर पड़ा होगा तो ज़रूर बिल्लू...” आगे की दुखद कल्पना से बचने के लिए उसने बिल्लू से ही कुछ इस तरह पूछा ताकि उसे शक न हो, “बिल्लू! कुट्टू आज तुम्हारे साथ था ग? “कुट्टू!” बिल्लू आँखें चमकाकर बोला, “सुबह से मैं उसी को तलाश रहा हूँ! कहाँ है वह?” “चलो, कुट्टू बिल्‍लू के हाथ तो नहीं आया।” कालू ने सोचा और पूछताछ के लिए नीम के तने के पास गया। “नीम भाई! तुमने कुट्टू को कहीं देखा है?” “मैं तो सुबह से ही हवा के सुहाने झोंकों में झूम रहा हूँ कालू मैया। नन्‍ही से पूछकर देखो न?” “नन्ही बहन,” कालू लपककर नन्‍्ही गौरेया के पास पहुँचा, “कुटूटू अपने घोंसले में नहीं है... तुमने कहीं उसे देखा?” “घोंसले में नहीं तो ज़रूर आसमान की सैर कर रहा होगा। चिन्ता की कद्दू कहाँ यया? २9.




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