महान कृषि- वैज्ञानिक प्रो० धर | MAHAN KRISHI VAIGYANIK PROF. DHAR

MAHAN KRISHI VAIGYANIK PROF. DHAR by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishraपुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 प्रो० धर अपने गुरु के साथ प्रो० घर अपने गुरु आचार्य प्रफुल्ल चन्द्र रे के व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित थे । सादगी, अथक परिश्रम तथा मितव्ययतापूर्वक जीवन विताने की प्रेरणा आपको अपने गुरु आचाये पी० सी० रे से ही मिली थौं। प्रो० धर “आचायें प्रफूलल चन्द्र रे : लाइफ एण्ड एचीवमेन्ट्‌'” नामक पुस्तक में लिखते हैं कि आचार्य पी० सी० रे अपने शिष्यों के प्रति सदैव उदार रहते थे तथा शिष्यों द्वारा प्राप्त की गयी उपलब्धियों की सदैव प्रशंसा करते किक थ। प्रो० धर लिखते हैं-- “में जुलाई 1907 में विज्ञान के अध्ययन हेतु कलकत्ता आया तथा लगभ्नग 12 वर्ष पश्चात्‌ अर्थात्‌ जुलाई 1919 में इलाहाबाद में पढ़ाने हेतु आया । इस प्रकार देण में हो रहे रसायन विज्ञान के विकास से मैं पिछले 51 वर्षों से निकट से सम्बन्धित रहा । 51 वर्षों की इस अवधि के दौरान में अपने गुरु आचाये पी० सी० रे के जीवन तथा कार्य से सम्बन्धित कई लेख लिख चुका था तथा कई व्याख्यान दे चुका था। पश्चिमी बंगाल सरकार ने मुझे आचाय॑े रे पर एक छोटी पुस्तक बंगला भाषा में लिखने के लिये आमन्त्रित किया किन्तु मैं अपने स्वयं के शोध तथा शिष्यों की डाक्टरेट डिग्री से सम्बन्धित शोध में अत्यन्त व्यस्त होने के कारण नहीं लिख सक्रा । में इस बात से प्रसन्‍न हूँ कि में आचार्य पी० सी० रे के जीवन-चरित्र से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथा उनकी उपलब्धियों, शोध्य कार्यों तकनीक के विकास पर उनका प्रभाव तथा हमारे देश को तरक्की में उनका योगदान इत्यादि विवरण लिख सकते के योग्य रहा हूं । प्रो० धर लिखते हैं-- अपने गृूरू आचार्य पी० सी० रे पर दिये जाने वाले प्रत्येक व्याख्यान में में श्रोताओं को सदेव यह दिखाया करता था कि मरक्‍्यूरस नाइट्राइट के क्रिस्टल बनाना




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