किराये का इंद्रधनुष | KIRAYE KA INDRA DHANUSH

KIRAYE KA INDRA DHANUSH by पुस्तक समूह - Pustak Samuhसूरज प्रकाश -SURAJ PRAKASH

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सूरज प्रकाश -SURAJ PRAKASH

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8/23/2016 दरवाजा अंकल ने खोला था। ड्राइंग रूम में हलकी रोशनी थी। उनके हाथ में भरा हुआ गिलास था और ड्राइंग रूम के कोने में बने उनके शानदार बार में बत्ती जल रही थी। बार स्टैंड पर आइस-बॉक्स, सोडा फाउंटेन और खुली बोतल रखी थी। - यस, यंग मैन, उन्होंने अपने गिल्रास में से लंबा घूँट लेते हुए पूछा था - कहाँ घूमकर आ रहे हो? - कहीं नहीं अंकल, बरसात की वजह से सारे दिन घर पर ही रहा, अभी जरा नीचे तक घूमने निकल गया था। मैं उनसे नजरें नहीं मित्राना चाहता था, क्योंकि मूड अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था और मैं नहीं चाहता था कि उन्हें पता चले कि मैं बीयर पीकर आया हूँ | वैसे भी अपनी और फजीहत करवाने की इच्छा नहीं थी। बेशक अंकल ने कोई ऐसी बात नहीं की थी, जिसे मैं अन्यथा लेता, लेकिन वे सुबह हो रहे पूरे ड्रामे में तो मौजूद थे। जब मैंने शहर देखने की इच्छा व्यक्त की थी तो वे भी तो मुझे गाइड कर सकते थे या रितु या ड्रायवर को मुझे घुमा लाने के लिए कह सकते थे, या फिर आंटी और रितु को चीजें रख लेने के लिए कह सकते थे। - तुम्हारा खाना तुम्हारे कमरे में रखा है, हमें पता नहीं था तुम कितने बजे तक लौटोगे। उन्होंने गिल्लास खाली किया और तिपाई पर रखते हुए बोले थे - हम डिनर पर बाहर इन्वाइटेड हैं। आंटी वगैरह जा चुके हैं। मैं तुम्हारे लिए ही बैठा था। वे उठ खड़े हुए और बाहर जाते हुए बोले - ओ.के. यंग मैन, सी यू टुमारो, गुड नाइट। मैं गुडनाइट कहकर अपने कमरे में आ गया था। कोनेवाली मेज पर ढका हुआ खाना और पानी का जग वगैरह रखे हुए थे। देखा - दो एक सब्जियाँ, चावल और रोटी थीं। भूख होने के बावजूद खाने की इच्छा नहीं हुई | अगर मेरी इतनी ही चिंता थी तो मुझे उसी वक्‍त बता देते या कह देते, बाहर ही खा लेता। लेकिन फिर सोचा - अगर मैं खाना न खार्ऊँ और सुबह होने पर आंटी देखेंगी तो फिर भिनभिनाएँगी - एक तो स्पेशियली खाना बनवाया और छुआ तक नहीं। नहीं खाना था तो मना करके जाते। और में खाना खाकर सो गया था। सबेरे से फिर वही रुटीन चल रहा है, बरसात हो रही है और मैं कमरे में बंद हूँ। रूबी एक बार सुबह पूछ भी गई थी वीडियो पर कोई फिल्म देखना चाहेंगे। लेकिन मैंने मना कर दिया था। फिल्म देखने का मतल्रब है - ड्राइंग रूम में बैठना और ड्राइंग रूम चूँकि सभी कमरों के बीच में पड़ता है, अतः सबकी निगाहों के बीच बैठना मुझे कतई गवारा नहीं था। रितु के कमरे से अब म्यूजिक की आवाज आनी बंद हो गई है, लगता है कि किसी किताब वगैरह में मन लग गया होगा। फर्स्ट ईयर में है रितु। सुंदर है, पर है अपनी माँ की तरह नकचढ़ी। एक ही नजर में आप मालूम कर सकते हैं - माँ-बाप की बिगड़ैल और जिद्दी लड़की है। बस ड्राइंग रूम में ही कल जो हैलो हुई थी, उसके बाद नजर तो कई बार आई है लेकिन आँखें न उसने मिलाई हैं न मैंने ही जरूरत समझी है। खासकर कार्डीगन वाले प्रसंग से तो मुझे उसकी शक्ल तक से नफरत हो गई है। इस घर में मुझे एक ही आदमी ढंग का लगा है - टीपू। सत्रह साल का टीपू देखने में खासा जवान लगता है, स्मार्ट भी है। टैंथ में पढ़ता है। इतना अच्छा लड़का, लेकिन अफसोस कि वह गूँगा-बहरा है। समझता है वह भी सिर्फ अंग्रेजी लिप मूवमेंट के सहारे। अपनी बात माइमिंग से ही समझाता है या कभी-कभी लिखकर भी। उससे आज बहुत ही शानदार ढंग से मुलाकत हुई | इंटरव्यू के सिलसिले में कुछ तैयारी कर रहा था कि दरवाजे पर वह दिखाई दिया। पहले तो मैंने पहचाना नहीं लेकिन जब अंदर आ गया और उसने हाथ बढ़ाया तो मुझे याद आ गया| कल जब मैं यहाँ पहुँचा तो वह स्कूल जा 4/10




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