जौनाथन लीविंग्स्टन सीगल | JOHNATHAN LIVINGSTON SEAGULL

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रिचर्ड बाख - Richard Bakh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उद्देश्य भी एक से थे - उड़ने में पारंगत होना । वे सब-की-सब बेहद कुशल चीलें थीं और वो रोजाना घंटों उच्च-स्तरीय उड़ानों का अभ्यास करतीं थीं । अब अपने कबीले को जौनाथन लगभग भूल चुका था । एक दिन उसने अपने साथी से पूछा, “यहाँ इतनी कम चीलें क्यों हैं ? पृथ्वी पर तो सैकड़ों-हजारों समुद्री चीलें थीं ।' “हजारों-लाखों चीलों में से एक ही यहाँ तक आ पाती है । तुम उनमें से एक हो जौनाथन। हम लोग ने न जाने कितने घाटों का पानी पिया और फिर यहाँ पहुँचे । तुमने एक बार में ही इतना कुछ सीख लिया, इसी लिए तुम्हे यहाँ आने के लिए, हमारी तरह जन्मों के जंजाल से नहीं गुजरना पड़ा ।' एक दिन, रात के समय, जौनाथन ने हिम्मत बटोरी और मुखिया चील के पास गया । ऐसा सुनने में आया था कि जल्द ही मुखिया इस दुनिया को छोड़ कर चला जायेगा । “चांग,..' उसने थोड़ा सा घबराते हुए कहा । उस बूढ़ी चील ने अपनी दयालू आँखों से उसकी ओर देखा और पूछा, “बोलो, मेरे बेटे ?” मुख्विया किसी भी चील से तेजु उड़ सकता था । वह उड़ान की बारीकियों के बारे में बहुत सी बातें जानता था । औरों को अभी उससे बहुत कुछ सीखना था । “यहाँ के बाद क्‍या होगा ? हम लोग कहाँ जायेंगे ? क्‍या स्वर्ग जैसी कोई जगह नहीं है ?' “वास्तव में स्वर्ग नाम की कोई जगह नहीं है जौनाथन । स्वर्ग कोई स्थान नहीं है और न ही वो कोई समय है । स्वर्ग का मतलब है परिपूर्ण होना, यानि परफेक्ट होना ” चांग कहते-कहते एक क्षण के लिए रुका । ' तुम बहुत तेज्‌ रफ्तार से उड़ते हो, है न ?! 'मुझे तेज गति से उड़ने में बड़ा मजा आता है,' जौनाथन ने कहा । “जिस क्षण तुम परफेक्ट स्पीड से उड़ोगे उस क्षण तुम स्वर्ग पहुँच जाओगे । और यह रफ्तार, हजार मील प्रति घंटा नहीं है, न ही करोड़, और न ही प्रकाश की गति के बराबर है । क्योंकि हरेक संख्या की एक सीमा होती है और परिपूर्णता यानि परफेक्शन की कोई सीमा नहीं होती । परफेक्ट स्पीड का मतलब है, बस वहाँ होना ।' बिना किसी इशारे या संकेत के चांग उसी क्षण, आँख झपकते ही वहाँ से गायब हो गया और पानी के पास कोई पचास फीट दूर जाकर खड़ा हो गया । फिर वह देखते ही वहाँ से भी लुप्त हो गया । अब वह जौनाथन के कंधों के पास खड़ा था । “इसमें बड़ा मजा आता है,' उसने कहा । जौनाथन एकदम स्तब्ध रह गया । स्वर्ग के बारे में वह पूछना ही भूल गया । 'आप यह कैसे करते हैं ? ऐसा करते वक्‍त कैसा लगता है ? इससे आप कितनी दूर तक जा सकते हें ?' * तुम इससे जहाँ चाहो, वहाँ पर, जब चाहो जा सकते हो,' बूढ़ी चील ने उत्तर दिया, “मैं सभी जगहें घूम चुका हूँ । यह कितनी अजीब बात है कि जो यात्रा की लालसा में परफेक्शन को ठुकराते हैं वो कहीं नहीं जा पाते । और जिनका रुझान परफेक्शन की ओर होता है वो सभी जगह हो आते हैं ।' 'क्या आप मुझे इस प्रकार उड़ना सिखा सकते हैं ?' जौनाथन ने पूछा । उसे इस अनजाने रस्ते पर चलने से डर लग रहा था । “तुम चाहो तो अभी सीखना शुरू कर सकते हो ।' चांग ने कहा । चांग हल्के-हल्के बोल रहा था और अपने छात्र को गौर से देख रहा था, 'अगर तुम सोच की रफ्तार से, कहीं भी उड़ना चाहते हो,' उसने कहा “तो तुम यह जान कर शुरू करो, कि तुम वहाँ पहुँच गए हो, ।' चांग के कहने का मतलब था - जौनाथन तुम अपने आपको इस बियासिल इंच पंखों की लम्बाई वाले, सीमित शरीर में कैद मत समझो । याद रखो - तुम्हारी सच्ची प्रकृति, समय और स्थान से मुक्त है । जौनाथन अपनी तपस्या में दिन-रात लगा रहा । फिर एक दिन, किनारे पर खडे-खडे, आँखे बंद करे, विचारों में लीन, उसे लगा जैसे उसे चांग की बात समझ में आ गई हो । “यह सच हे ! मैं परफेक्ट हूँ, एक असीमित समुद्री चील हूँ!' वो खुशी से झूम उठा । “बहुत अच्छे !” चांग ने कहा । उसकी आवाज में विजय की गूंज थी ।




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