हम मोटली माई के लोग | HAM MOTALI MAI KE LOG

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बाबा मायाराम - BABA MAYARAM

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हमारे यहां शादी और श्राद्ध में सब मिलकर खर्चा उठाते हैं - दहेज इकट्ठा करते हें, भेंट देते हें, लकडी-पत्तल लाते हैं। हमारे गांव में लड़ाई-झगडे होते हैं तो पड़ोसी गांव के बुजुर्ग पंचायत बैठाकर झगड़ा तोड देते हैं। हम उजड॒कर जाएंगे तो हमारे ब्याह और श्राद्ध केसे होंगे, झगड़े तोड़कर मेल कराने के लिए भी कौन आएगा, हमारे यहां अगर बीज खत्म हो जाए, बैल मर जाए या कोई भी विपदा आ जाए तो सब सगे-संबंधी हमें मदद करते हैं जो कि पूरे परगने में फैले हुए हैं। लेकिन वहां एक साल भी बरसात न हो, या बीज खत्म हो जाए या बैल मर जाए तो हमको दूसरा बैल या थोड़ा-बहुत बीज कौन देने वाला है? हमारी लडकियों और बहनों के ससुराल पास ही हें, हमारी पत्नियों का पीहर भी पास ही है। हम उजड़कर जाएंगे तो उनसे दुबारा कभी भेंट नहीं होगी। वे हमारे लिए एक तरह से मर जाएंगे। हमारे गांव की औरतें तो हमें धमकी देती हैं कि 'पति तो हम छोड़ने के लिए तैयार हैं। पति तो दूसरा भी मिल जाएगा। लेकिन दूसरे मां-बाप कहां से मिलेंगे?” हम यहां से जाने के लिए तैयार नहीं हैं। वहां हमारे साथ कोई दुख-दमन हो तो किसको बताएंगे? मोटर किराया देकर आप तो हमें यहां भेजने से रहे। हमारे यहां गांव में इतना मेल-जोल कैसे है? क्योंकि हमारी आपस की समझ है, एक-दूसरे को मदद कर सकते हैं, और सभी लगभग एक-बराबर की स्थिति में हैं। बगैर जमीन वाला कोई इक्का-दुक्का हो तो हो वरना सभी के पास जमीन है। कोई भी ज्यादा जमीन वाला नहीं है, सभी के पास थोड़ी-थोड़ी जमीन है। हम गुजरात जाएंगे, तो हमें बड़े-बड़े जमीन वाले, पाटीदार और बनियों के साथ रहना होगा। वे हमें दबाएंगे भी। गुजरात में तो वहीं रहने वाले आदिवासियों की जमीनें वहां के बडे लोगों ने तीस-चालीस साल पहले छीन ली थीं। आज भी छीन रहे हैं। पहले तो वहां भी आदिवासियों की बस्ती ही थी। फिर हम तो अनजाने लोग हें। हमें न तो वहां की बोली आती है, न ही कायदा-कानून। संपर्क और राज भी उन्हीं बडे लोगों का है। इतनी लागत की खेती यदि हमसे न हो तो पैसे के लिए हमें उनके पास अपनी जमीन गिरवी रखनी होगी। धीरे-धीरे वे हमारी जमीनें छीन लेंगे। वहां के खास रहने वालों की छीन ली है तो हमारी कैसे छोडेंगे? फिर हम अहमदाबाद या गांधीनगर के चक्कर लगाते रहेंगे पर दूसरी जमीन कौन देने वाला है? यह बात जान लो कि यहां हमारे बाप-दादा की जमीन है जिस पर हमारा हक है। यह छूट जाए तो हमारे हाथ गैती-फावड़ा-तगाड़ी ही लगेगा - दूसरा कुछ नहीं। जनम हमारा इसी गांव में हुआ है - हमारा “नरा' यहीं गड़ा है। समझो हम यहीं से उपजे हैं। हमारे गांव की हद, देव-धामी सभी यहीं हैं। हमारे पूर्वजों ने 'पालिया' “गाता' 'हिंडला' (झूले) सभी यहां हैं। हम काला राणों, राजा फान्टो, वेला ठाकुर, इंदी राजा पूजने वाले लोग हैं। आई-खेड़ा, खेड़ू बाई सभी को हम पूजते हैं। हमारी बड़ी देवी है राणी काजल। उनका व कुंबाई व कुंडू राणो का देवस्थल पास के मथवाड़ गांव में है। इन्हें छोडकर जाएंगे तो हमें देवता कहां से मिलेंगे? हमारे त्यौहार में इंदल, दिवासा, दिवाली में पूरे परगना के लोग आते हैं। वहां कौन आएगा? भगोरिया में हम सभी हाट में जाते हैं - वहां हमारे लड़के-लड॒कियां आपस में जोडी बनाते हैं। गुजरात में ऐसा होगा क्या? आप कहते हैं कि गुजरात की जमीन ले लो। 'नेता' तुमको भड़का रहे हैं। उनके पीछे मत पड़ो। हम उनके पीछे नहीं पड़ रहे हैं। हम तो अपनी जमीन, अपने जंगल, नदी और अपने डोर-डांगर के पीछे पड रहे हैं। आप कहते हैं कि मुआवजा ले लो। सरकार किस चीज का मुआवजा दे रही हे? हमारे घर का, हमारे खेत और खेत की मेड पर उगे झाड़ का? लेकिन हम सिर्फ इसी से तो नहीं जीते। आप क्या हमें हमारे जंगल का मुआवजा देने वाले हो? उसमें सागौन-बांस-उम्बर-तेंदू-सलाई-महुआ-आंजन-खाखरा कई तरीके के झाड़ हें। उसकी पत्ती, लकड़ी, तना और फल का हम उपयोग करते हैं और बेंचते भी हैं। इसका कितना मुआवजा होगा? या हमारी मोटी माई नर्मदा का मुआवजा देने वाले हो? उसकी मछली, पानी, उसमें आने वाली भाजी, उसके तट पर रहने वाले सुख - इनका क्‍या मोल हे? कया हमारे जानवर और उनके लिए यहां मिलने वाले चारे-पानी का भी मुआवजा दोगे? हमारे खेतों का मुआवजा तुम किस तरह से आंकते हो? यह जमीन हमने खरीदी नहीं है। इसे तो हमारे पूर्वजों ने जंगल साफ करके बनाया है। इसका कया भाव लगाओगे? हमारे देव, जात, सगे-संबंधियों के साथ-सहारे का क्‍या मोल होगा?




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