नीला प्याला | NEELA PYALA

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अरकादी गैदार - ARKADI GAIDAR

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इससे पहले कि हम मुँह से एक शब्द भी निकाल पाते कहीं दूर से तोपों की गडगडाहट सुनायी दी मानो बादल गरजने लगे हों। हमारे पाँवों के नीचे जमीन हिल-सी गयी। काली धूल और धुएँ का एक बादल मैदान के आखिरी छोर के ऊपर छा गया। बौखलाकर बकरा उछल पड़ा और रस्सी तुड़ाकर भागा। चील ने अपने पंख जोर से फडफडाये और दूर आसमान में जाकर उड़ने लगी। “फासिस्ट पिटे जा रहे हैं!” किसी ने भारी आवाज में दोहराया। अब जाकर हमारी नजर एक सफेद बालों वाले बूढ़े पर पड़ी जो झाड़ी के पीछे खड़ा था। उसकी दाढी लम्बी, बाल सफेद, कन्धे चौड़े थे और उसके हाथ में एक भारी गाँठदार डण्डा था। उसके पाँवों के पास एक बड़ा झबरा कुत्ता बैठा था जो दाँत निकाले पाश्का के कुत्ते पर गुर्रा रहा था। शारिक डर के मारे दुम दबाये बैठा था। बूढ़े ने अपने सिर से सीकों की चौड़े पल्‍लों वाली टोपी उठायी और जुरा अदब से पहले त्लाना की ओर झुका और फिर बाकी हम सबकी ओर। फिर उसने अपना डण्डा घास पर रखा, जेब से एक पाइप निकाला और तम्बाकू भरकर उसे सुलगाने लगा। पाइप सुलगाने में उसे बड़ी देर लगी - वह कभी तम्बाकू को अपने अँगूठे से दबाता और कभी उसको कील से ऐसे कुरेदता जैसे कुरेदनी से जलते अंगारों को कुरेद रहा हो। आखिरकार उसको तसलली हुई और तब इतने जोर से वह कश खींचने ओर धुआँ उड़ाने लगा कि पेड़ पर बैठे हुए लाल सेना के सिपाही बन्दूकें लिये खाइयों और झाडियों में से, मेंडों और टीलों पर से कूद पड़े। वे दौडे, कूदे, फाँदे, गिरि और फिर खड़े हो गये। उनकी कतारें बँध गयीं, एक दूसरे से सटकर वे फेल गयीं। फिर चीखता-गरजता सारा दल तूफान की तरह आगे बढ़ने लगा और उन्होंने अपनी संगीनें तानकर एक टीले की चोटी पर धावा बोल दिया जिसका एक भाग अभी तक धूल ओर धुएँ से घिरा था। फिर सब कुछ शान्त हो गया। टीले की चोटी पर एक सिगनल देने वाला आया और अपने झण्डे हिलाने लगा - जहाँ हम खडे थे वहाँ से वह सिपाही खिलोने-सा दिखाई देता था। फिर जोर से बिगुल बज उठा और उसने “वापस लोटने' की सूचना दी। पेड़ पर बैठा हुआ सिपाही, जो दुश्मन पर नजर रखे हुये था, अपने भारी-भरकम 15 / नीला प्याला




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