जीरो में कुछ नहीं | ZERO MANE KUCH NAHIN

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पुस्तक समूह - Pustak Samuh

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मुहम्मद उमर -MUHAMMAD UMAR

2010 से राजस्थान के अजीम प्रेमजी फाउंडेशन में गणित के लिए एक संसाधन व्यक्ति के रूप में कार्यरत

.

एसआईईआरटी उदयपुर, राजस्थान (आईजीआईजी राजस्थान) में शिक्षाशास्त्र और पाठ्यक्रम विशेषज्ञ
एकलव्य में अनुसंधान सहयोगी गणित - शैक्षिक अनुसंधान और नवाचार संस्थान, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश।
जागृति बाल विकास समिति, कानपुर, उत्तर प्रदेश में गणित और विज्ञान शिक्षक।
आईआईटी कानपुर में सामाजिक परिवर्तन के लिए एक थिएटर ग्रुप, जन चेतना मंच के संस्थापक सदस्य
...के रूप में भी काम किया |

संपर्क नंबर: 9001565000

ई-मेल आईडी: [email protected]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाव से तीन कंकड़ उठाकर मेरे सामने रख दिए। “कैसे पता चला?” मैंने पूछा। “तीन देखकर ...” वह बोला। तीस और तीन दोनों को ही दर्शाने के लिए उसने तीन कंकड़ रखे थे। मैं देखना चाहता था कि तीन सौ के लिए भी वह ऐसा ही करता है या कुछ और, सो मैंने अपनी जाँच जारी रखी । कॉपी पर 300 लिखकर पूछा, “ये कितना लिखा है?” “थिरी हंड्रेड” वह बोला। “इसके लिए भी कंकड़ ले कर आओ ।” “ये तीन कंकड़ ... और... ज़ीरो तो कुछ होता ही नहीं... तो कुछ नहीं...” मुझे जिस बात का अन्देशा था वैसा ही हो रहा था। रोहित ने 3, 30 और 300 के लिए तीन-तीन कंकड़ ही रखे थे। के लिए मैंने कहा, “भ्री के लिए भी तीन कंकड़ और श्री हंड्रेड के लिए भी तीन कंकड़ ?” कुछ देर सोचने के बाद तीन कंकड़ों के आगे दो कंकड़ और बिछाते हुए वह बोला, “ये दो ज़ीरो लग गए।” ये मद येड अब तक अनुराग और महिमा भी हमारी बातचीत में रुचि लेने लगे थे। वे बार-बार मुझसे कह रहे थे कि ये वाले सवाल तो उन्हें आते हैं। सो मैंने कुछ बातचीत इनके साथ भी की। पहले अनुराग की कॉपी पर 1 लिखकर मैंने पूछा, “ये कितना है?” “वन है सर,” वह बोला। “इसके लिए चित्र कैसे बनाएँगे?” उसने एक डण्डा और उसमें एक गोला बना दिया। “ये क्‍या बनाया है?” मैंने पूछा। “वन का डण्डा और ज़ीरो” अपनी इसी बात की ओर ध्यान दिलाने शैक्षणिक संदर्भ अंक-7 (यूल अंक 64) ऊँगली से चित्र दिखाते हुए वह बोला । “ये डण्डा एक का डण्डा है?” मैंने फिर से पूछा। कहाँ! “और ये ज़ीरो है?” हार सीधी-खड़ी लकीर को वह “वन का डण्डा' कह रहा था और मोती के लिए बने गोले को 'ज़ीरो! कह रहा था। 25




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